मुंगेर रेलवे स्टेशन और इसके आस-पास की रेलवे जमीन पर वर्षों से किए गए अवैध अतिक्रमण पर आखिरकार रेलवे प्रशासन ने सख्त कदम उठाते हुए बुलडोजर चलाया। इस अभियान के तहत रेलवे की जमीन से लगभग 8,000 स्क्वायर मीटर क्षेत्रफल को अतिक्रमण से मुक्त कराया गया। अभियान के दौरान 55 कच्चे मकान और झोपड़ियों को ध्वस्त किया गया, जिससे वर्षों से बसे लोगों को छत से वंचित होना पड़ा।
किसके नेतृत्व में चला यह अभियान?
इस कार्रवाई का नेतृत्व रेलवे के असिस्टेंट इंजीनियर समर्थ गर्ग ने किया। उनके साथ जेसीबी मशीन, गैंगमैन और रेलवे सुरक्षा बल की एक बड़ी टीम मौजूद थी। जैसे ही यह टीम मुंगेर रेलवे स्टेशन पहुंची, पूरे क्षेत्र में हड़कंप मच गया। कुछ लोगों ने विरोध भी जताया, लेकिन प्रशासन अपने निर्णय पर अडिग रहा।
स्टेशन परिसर से लेकर प्लेटफॉर्म नंबर दो तक चला बुलडोजर
सबसे पहले कार्रवाई स्टेशन परिसर में की गई, जहां वर्षों से झोपड़ियां और कच्चे मकान बना लिए गए थे। JCB मशीनों की सहायता से इन सभी अस्थायी ढांचों को ध्वस्त कर दिया गया। इसके बाद टीम ने प्लेटफॉर्म नंबर 2 के नीचे की रेलवे जमीन की ओर रुख किया, जहां भी अतिक्रमण किया गया था। वहां भी बुलडोजर चलाकर जमीन को अतिक्रमण से मुक्त कराया गया।
अभियान में कौन-कौन अधिकारी थे शामिल?
इस अभियान में रेलवे के कई अधिकारी और सुरक्षाकर्मी शामिल थे। प्रमुख नामों में शामिल हैं:
आईओडब्ल्यू रमरेश कुमार भगत
जमालपुर रेलवे स्टेशन के आरपीएफ पोस्ट इंचार्ज राजीव नयन
जीआरपी के जवान
पीडब्लूआई विभाग के गैंगमैन
इन सभी की संयुक्त कार्यवाही से यह अभियान सफल रहा और रेलवे जमीन को अवैध कब्जे से मुक्ति मिली।
डीआरएम ने दिया था अतिक्रमण हटाने का आदेश
रेलवे अधिकारियों के अनुसार, कुछ दिन पहले मालदा डिविजन के डीआरएम मनीष कुमार गुप्ता ने मुंगेर रेलवे स्टेशन और आसपास के क्षेत्र का निरीक्षण किया था। निरीक्षण के दौरान यह पाया गया कि रेलवे की कीमती जमीन पर लोगों ने अवैध रूप से कब्जा कर मकान बना लिए हैं, और झोपड़ियां डालकर वहां निवास कर रहे हैं। इसके अलावा कुछ जमीनों का इस्तेमाल व्यवसायिक कार्यों में भी किया जा रहा था, जो पूरी तरह से नियमों के खिलाफ है। इस निरीक्षण के बाद डीआरएम ने सख्त निर्देश दिए कि रेलवे की जमीन को जल्द से जल्द खाली कराया जाए और अतिक्रमण हटाया जाए।
पहले ही दी जा चुकी थी चेतावनी
रेलवे प्रशासन ने यह भी स्पष्ट किया कि अतिक्रमणकारियों को पहले से ही नोटिस भेजकर चेतावनी दी गई थी। उन्हें समय दिया गया था कि वे स्वयं अपनी झोपड़ियों और कच्चे घरों को हटाएं। परंतु नोटिस के बावजूद जब कोई कार्रवाई नहीं की गई, तो प्रशासन को यह कदम उठाना पड़ा।
प्रभावित लोगों का दर्द और आक्रोश
जहां रेलवे ने अपनी ज़मीन को खाली कराने के लिए सख्ती दिखाई, वहीं स्थानीय लोगों में भारी नाराज़गी देखी गई। कई वर्षों से वहां बसे परिवारों का अब कोई ठिकाना नहीं रहा। महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे खुले आसमान के नीचे आ गए हैं। उनका कहना है कि अब हमारे पास रहने को कोई घर नहीं है। हम कहां जाएं? हमारे बच्चों का क्या होगा?
कुछ लोगों ने कहा कि उनका जीवन यहीं बीता है, उन्होंने धीरे-धीरे अपने छोटे आशियाने बनाए थे, और अब उन्हें उजाड़ दिया गया है।
क्या है रेलवे की ज़मीन पर कब्जे का नियम?
रेलवे की ज़मीन पर किसी भी प्रकार का निजी निर्माण या कब्जा पूरी तरह अवैध होता है। रेलवे अधिनियम के तहत ऐसे अतिक्रमण को हटाने के लिए प्रशासन को सीधे कार्रवाई करने का अधिकार प्राप्त है। हालांकि, सामाजिक दृष्टिकोण से यह ज़रूरी है कि पुनर्वास जैसी योजनाएं भी समानांतर रूप से तैयार की जाएं ताकि गरीब और झुग्गी बस्तियों में रहने वाले लोग बेघर न हों।
आगे क्या?
रेलवे प्रशासन का कहना है कि यह अभियान यहीं नहीं रुकेगा। जो भी जमीनें अतिक्रमित हैं, उन सभी को चरणबद्ध तरीके से खाली कराया जाएगा। इसके लिए स्थानीय प्रशासन के साथ समन्वय बनाकर बड़े पैमाने पर अभियान चलाया जाएगा। वहीं दूसरी ओर, सामाजिक कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं ने रेलवे से मांग की है कि जिन परिवारों को उजाड़ा गया है, उनके पुनर्वास की व्यवस्था जल्द से जल्द की जाए।