पूर्व विधायक अनंत कुमार सिंह साक्ष्य के अभाव में रिहा, एमपी-एमएलए कोर्ट का बड़ा फैसला

शनिवार का दिन बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ लेकर आया, जब मोकामा के पूर्व विधायक और चर्चित बाहुबली नेता अनंत कुमार सिंह को एमपी-एमएलए कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया। यह फैसला विशेष न्यायाधीश कुमार पंकज ने सुनाया, जो मुंगेर के एमपी एवं एमएलए के लिए गठित विशेष न्यायालय में पदस्थ हैं। इस फैसले को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनाया गया क्योंकि सुरक्षा कारणों से अनंत कुमार सिंह को न्यायालय में प्रत्यक्ष रूप से उपस्थित नहीं किया गया था।

क्या था मामला?

पूरा मामला वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से जुड़ा हुआ है। आरोप था कि अनंत कुमार सिंह ने 31 मार्च 2019 को बिना अनुमति के 16 गाड़ियों के काफिले के साथ अपनी पत्नी नीलम देवी, जो कांग्रेस पार्टी की उम्मीदवार थीं, के प्रचार के लिए मुंगेर लोकसभा क्षेत्र के धरहरा अंचल में रैली की। यह चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन था। इसी मामले में धरहरा थाना में कांड संख्या 84/2019 दर्ज हुआ था।

इस शिकायत को फ्लाइंग स्क्वायड की टीम ने दर्ज किया था, जिसमें जमालपुर विधानसभा क्षेत्र के अंचल अधिकारी अबुल हुसैन बतौर मजिस्ट्रेट तैनात थे। उन्होंने इस घटना की रिपोर्ट लिखवाई और फिर उसी के आधार पर मामला दर्ज हुआ।

अनंत सिंह और उनके समर्थकों पर लगे थे आरोप

इस मामले में सिर्फ अनंत कुमार सिंह ही नहीं, बल्कि उनके साथ 80 से 100 समर्थकों के विरुद्ध भी मुकदमा दर्ज किया गया था। हालांकि जांच के दौरान सिर्फ अनंत कुमार सिंह के विरुद्ध ही आरोप पत्र समर्पित किया गया, बाकी अन्य लोगों के विरुद्ध कोई ठोस साक्ष्य प्रस्तुत नहीं हो पाया।

अभियोजन पक्ष नहीं कर पाया आरोप सिद्ध

इस मुकदमे की सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष यह साबित करने में असफल रहा कि अनंत कुमार सिंह ने जानबूझकर चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन किया या किसी प्रकार की अनुमति के बिना रैली की। अदालत ने पाया कि प्रस्तुत किए गए साक्ष्य पर्याप्त नहीं हैं और संदेह से परे जाकर अनंत सिंह की संलिप्तता को सिद्ध नहीं किया जा सकता। इसी आधार पर न्यायाधीश ने उन्हें रिहा करने का निर्णय लिया।

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से सुनाया गया निर्णय

इस मामले में एक विशेष बात यह रही कि अनंत कुमार सिंह को केंद्रीय कारा बेऊर, पटना में रखा गया था। चूंकि वह सजायाफ्ता बंदी हैं और सुरक्षा कारणों से उन्हें अदालत में प्रत्यक्ष रूप से पेश नहीं किया जा सका, इसलिए अदालत ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से निर्णय सुनाया।

अनंत सिंह ने आरोपों को बताया था निराधार

इससे पहले भी जब आरोपी बयान दर्ज करने की प्रक्रिया हुई थी, तब अनंत कुमार सिंह ने अपने ऊपर लगे आरोपों को निराधार बताया था। उन्होंने कहा था कि वह चुनावी प्रक्रिया का सम्मान करते हैं और कोई भी गैरकानूनी कार्य नहीं किया गया है। उनके अनुसार, यह मामला केवल राजनीतिक विद्वेष का परिणाम है।

क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला आने वाले समय में बिहार की राजनीति में गूंज जरूर पैदा करेगा। अनंत कुमार सिंह को लंबे समय से ‘छोटे सरकार’ के नाम से जाना जाता रहा है, और वह राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाए हुए हैं। उनकी पत्नी नीलम देवी वर्तमान में सक्रिय राजनीति में हैं और कांग्रेस पार्टी की ओर से चुनाव लड़ चुकी हैं। ऐसे में इस फैसले के बाद उनके राजनीतिक कद में फिर से इजाफा हो सकता है।

भविष्य की राजनीति पर असर

अनंत कुमार सिंह की रिहाई उनके समर्थकों और राजनीतिक दलों के लिए एक बड़ा संदेश है। वर्षों से विभिन्न मामलों में उलझे रहने के बाद यदि अदालत उन्हें साक्ष्य के अभाव में रिहा कर रही है, तो यह उनके पक्ष में बड़ा नैतिक बल बन सकता है। हालांकि यह देखना अभी बाकी है कि वह सक्रिय राजनीति में फिर से किस रूप में कदम रखते हैं।

निष्कर्ष: न्याय की जीत या राजनीतिक रणनीति?

अदालत का यह फैसला निश्चित रूप से न्याय व्यवस्था में विश्वास को और मजबूत करता है। यदि कोई साक्ष्य नहीं है, तो किसी को भी सजा नहीं दी जानी चाहिए — यही हमारे संविधान और कानून का मूलभूत सिद्धांत है। लेकिन, कई लोग इस फैसले को राजनीतिक चश्मे से भी देख रहे हैं।

फिलहाल, सच्चाई यही है कि अनंत कुमार सिंह को कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में रिहा कर दिया है और यह फैसला कानूनी दृष्टिकोण से उचित प्रतीत होता है।

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