मुंगेर, बिहार: वक्फ संशोधन कानून 2025 के विरोध में देशभर में मुस्लिम समुदाय द्वारा किए जा रहे प्रदर्शनों की कड़ी में मुंगेर में भी एक विशाल आम सभा का आयोजन किया गया। इस सभा का आयोजन तहफ्फुज औकाफ कमिटी, खानकाह रहमानी मुंगेर की ओर से नगर भवन में किया गया, जिसमें हज़ारों की संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग शामिल हुए।
हज़ारों की भीड़, एक ही आवाज़ – वक्फ और बीजेपी से आज़ादी
सभा में शामिल सभी लोगों ने हाथों में तख्तियां ले रखी थीं, जिन पर लिखा था – “हमें चाहिए आज़ादी”, “वक्फ कानून से आज़ादी”, “आरएसएस से आज़ादी”, “बीजेपी से आज़ादी”। जनसैलाब ने एक साथ जोरदार नारे लगाए – “वक्फ कानून और बीजेपी से आज़ादी, हम लेकर रहेंगे आज़ादी।” ये नारे सिर्फ भावनाओं की अभिव्यक्ति नहीं थे, बल्कि एक गहरी चिंता और नाराज़गी का प्रतीक थे, जो मुस्लिम समुदाय के दिलों में इस कानून को लेकर घर कर चुकी है।
वक्फ संशोधन कानून 2025: क्या है विवाद का कारण?
दरअसल, केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित वक्फ संशोधन कानून 2025 को लेकर मुस्लिम समुदाय में भारी विरोध है। लोगों का मानना है कि यह कानून वक्फ संपत्तियों पर सरकारी दखल को बढ़ावा देगा, जो न केवल धार्मिक स्वतंत्रता का हनन है, बल्कि एक समुदाय की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान पर भी कुठाराघात है।
इस संशोधन के तहत वक्फ बोर्ड की शक्तियों को सीमित करने और वक्फ संपत्तियों की निगरानी में सरकार की भागीदारी को बढ़ाने की बात कही गई है। इससे वक्फ की स्वतंत्रता, उसका प्रबंधन और उसका पारंपरिक सामाजिक उद्देश्य प्रभावित हो सकता है। मुस्लिम समुदाय का विश्वास है कि वक्फ संपत्तियां गरीबों, अनाथों, विधवाओं और मजलूमों की सेवा के लिए होती हैं और सरकार का इसमें हस्तक्षेप करना अनुचित है।
मौलाना फैसल रहमानी का संबोधन: वक्फ का इतिहास और महत्व
सभा की अध्यक्षता इमारत शरिया बिहार, झारखंड, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल के अमीर-ए-शरीयत हज़रत मौलाना अहमद वली फैसल रहमानी ने की। अपने भाषण में उन्होंने लोगों को सबसे पहले यह समझाया कि वक्फ क्या है और यह क्यों जरूरी है। उन्होंने कहा:
“वक्फ केवल जमीन-जायदाद का नाम नहीं है, यह एक सामाजिक व्यवस्था है। यह जन्म से लेकर मृत्यु तक हर इंसान की ज़िंदगी में शामिल होता है। वक्फ हमें बराबरी का अधिकार देता है। इसमें अमीर-गरीब, ऊंच-नीच, अगड़े-पिछड़े का भेद नहीं होता। यह हमारी पहचान, हमारी संस्कृति और हमारी इंसानियत की मिसाल है।”
1400 साल पुराने ट्रस्ट को खत्म करने की साजिश
मौलाना रहमानी ने सरकार पर सीधा आरोप लगाते हुए कहा कि वर्तमान सरकार एक ट्रस्ट की 1400 वर्षों की विरासत को मिटाने पर तुली हुई है। उन्होंने कहा:
“अगर यह कानून पास हो गया, तो वह दिन दूर नहीं जब आपको अपने मरहूम बाप-दादा को दफनाने के लिए भी जमीन खरीदनी पड़ेगी, जैसे विदेशों में होता है। यह केवल संपत्ति का मुद्दा नहीं है, यह हमारी धार्मिक स्वतंत्रता का सवाल है।”
राजनीतिक समर्थन और सामाजिक एकजुटता
इस जनसभा में आरजेडी के पूर्व प्रत्याशी और उनके समर्थकों की उपस्थिति ने इसे एक व्यापक सामाजिक आंदोलन का रूप दे दिया। यह स्पष्ट संदेश था कि वक्फ कानून का मुद्दा केवल धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों से भी जुड़ा है। सभी समुदायों के लोगों ने एक स्वर में कानून का विरोध करते हुए सरकार से इसे वापस लेने की मांग की।
एकता और संघर्ष का प्रतीक बना मुंगेर
मुंगेर की यह सभा न केवल एक विरोध प्रदर्शन थी, बल्कि यह एकता, संघर्ष और सामाजिक चेतना की मिसाल बन गई। सभा में भाग लेने आए लोगों ने शांति और अनुशासन के साथ अपनी बात रखी, जो यह दर्शाता है कि लोकतंत्र में आवाज़ उठाने का तरीका संवाद और एकजुटता के माध्यम से भी हो सकता है।
सांप्रदायिक सद्भाव और लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा का आह्वान
सभा के अंत में मौलाना फैसल रहमानी ने मंच से इस्तेमाई दुआ (सामूहिक प्रार्थना) करवाई, जिसमें देश की अमन-चैन, इंसाफ और सभी धर्मों की स्वतंत्रता के लिए अल्लाह से दुआ की