भोजपुरी संस्कृति और समाज का आधारस्तम्भ है सद्भाव, सहकार और समर्पण : प्रो. तिवारी
भोजपुरी लोक में गाली भी सम्मान के साथ परोसा जाता है
भोजपुरियत को भूल रहा भोजपुरिया समाज
आरा,18 जनवरी. भोजपुरिया समाज आज भोजपुरियत को भूलकर पाश्चात्य प्रभाव में अपनी भाषा और साहित्य से दूर हो रहा है जिसकी वजह से भोजपुरी भाषा की संवैधानिक मान्यता को भी बल नहीं मिल रहा. भोजपुरी समाज और संस्कृति की बुनियाद में सद्भाव, सहकार और समर्पण की भावना अंतर्निहित है. उक्त बातें बात-बतकही संवाद कार्यक्रम के दौरान मुख्य वक्ता पीजी कॉलेज, गाजीपुर के प्राध्यापक और भोजपुरी के चर्चित विद्वान डॉ राम नारायण तिवारी ने कही. उन्होंने आगे कहा कि भोजपुरी संस्कृति सदैव से समृद्ध रही है और नारी विमर्श, अधिकारों के प्रति सजगता, पर्यावरण चिंतन हमेशा से इसका अंग रहा है जो भोजपुरी लोकगीतों में प्रत्यक्षतः दिखता है.
भोजपुरी लोक की संस्कृति शास्त्रीय पद्धति से अलग रही है. वैदिक पद्धति पुरुष प्रधान है जबकि लोक स्त्री प्रधान. उन्होंने इसका उदाहरण भी गीतों के माध्यम से ही दिया. उन्होंने कहा कि वेद में अग्नि को पुरुष जबकि लोक में स्त्री कहा जाता है. भोजपुरी गीत “सविता कोखे जमले आदित” इस बात का उदाहरण है. लोक में देवों या देवियों को जगाया जाता है.उन्होंने भोजपुरी में बातें की और कहा कि “हमनी के भोजपुरिया समाज मे माटी जगवल जाला, माटी के कोड़ाई होला आ मर गईला के बाद माटी दियाला.” धरती को माँ माना जाता है. लोक मदर ओरिएंटेड है. उन्होंने कहा कि पश्चिम देशों का फेमिनिज़्म अपने अधिकार के लिए लड़ता है लेकिन भारत का फेमिनिज़्म सोशलाइस्ट है. यही नही उन्होंने कहा कि भोजपुरी लोकगीतों में गारी(गाली) देने की एक परम्परा है जो विभिन्न अवसरों पर लोग बड़े प्यार से महिलाओं के इस लोकसंस्कृति को सुनते हैं लेकिन भोजपुरी के इन गीतों में भाषा की इतनी संयम है कि सुनने वाला भी कायल हो जाय. उदाहरण के लिए इस गीत को समझिये….
” रस बास सुभाष के गारी
चूरा दही से आँगन गमकत
रस बास सुभाष के गारी
जेवन्ही बइठेले कृष्ण कन्हैया
रस बास सुभाष के गारी
बहिनी राउरि द्रोपदी महारानी
चढ़ी गइली जुआरी जी
फुआ ररुरी कुंती महारानी
बिना बियाहे के भईली महतारी जी
रस सुभाष….
माता राउरि यशोदा महतारी
दु गो कुल के महतारी जी
रस सुभाष….”
उन्होंने जोर देकर कहा कि आज का भोजपुरिया समाज हीन भावना से ग्रसित है और अपनी मूल भाषा को अपना नहीं रहा है. डॉ. तिवारी भोजपुरी लोक संस्कृति के मर्मज्ञ माने जाते हैं और भोजपुरी श्रम गीत जंतसार, बारहमासा, गारी गीतों का संकलन उन्होंने पूरे भोजपुरी प्रदेश में घूम-घूम कर किया है.
अध्यक्षता करते हुए प्रो नीरज सिंह ने कहा कि भोजपुरिया समाज पूंजीवाद के प्रभाव में आ गया है जिसके फलस्वरूप भोजपुरी संस्कृति संक्रमण के दौर से गुजर रही है. अध्यक्षीय वक्तव्य में आलोचक जितेंद्र कुमार ने कहा कि भोजपुरी भाषा, संस्कृति और समाज पर व्यापक नजरिए से अकादमिक शोध की जरूरत है.
धन्यवाद ज्ञापन देते हुए प्रो दिवाकर पांडेय ने भोजपुरी लोक संस्कृति की विशेषताओं को रेखांकित किया. संचालन रवि प्रकाश ने किया. उपस्थित लोगों में प्रो बलिराज ठाकुर, जनार्दन मिश्र, कृष्ण कुमार, रामयश अविकल, जनमेजय जी, कुमार अजय सिंह, कौशल्या शर्मा, नरेंद्र सिंह, आशुतोष पांडेय, रवि शंकर सिंह, सुमन कुमार सिंह, अमरजीत, रौशन कुशवाहा, रवि कुमार के अलावा भोजपुरी आंदोलन से जुड़े कई साहित्यकार, पत्रकार, मीडियाकर्मी और छात्र उपस्थित थे. बात-बतकही संवाद कार्यक्रम का आयोजन भोजपुरी छात्र संघ ने किया था.