न्यूज़ विज़न। बक्सर
जिले के राजपुर थाना क्षेत्र अंतर्गत सगरांव गांव में 6 मई से 12 मई तक आयोजित सप्तदिवसीय श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन किया गया। कथा के प्रथम दिन गाजे बाजे के साथ चौसा गंगा घाट से जलभरी की गई जिसमें हजारों लोग कलश यात्रा में शामिल हुए।
कथा के पहले दिन मामाजी के कृपापात्र आचार्य श्री रणधीर ओझा ने श्रीमद् भागवत कथा पर प्रकाश डालते हुए कहा की यह ग्रंथ श्रीमद् भागवत भगवान की शब्दमयी मूर्ति है। जैसे भगवान की पत्थर की मूर्ति, सोने की मूर्ति ,लकड़ी, हीरे, पन्ने की मूर्ति बनाकर हम उसमें भगवान की शक्ति को प्रतिष्ठित करते हैं और भाव के द्वारा उसकी पूजा करते हैं और उन मूर्तियों से हम शक्ति का अनुभव करते हैं और दर्शन प्राप्त कर अपने को धन्य समझते हैं। ठीक उसी प्रकार श्रीमद्भागवत महापुराण भगवान की शब्दमयी मूर्ति है और इस मूर्ति को श्री वेदव्यास जी ने बनाया है। किंतु भगवान की दिव्य ज्योति निर्मित नहीं है अपितु भगवान स्वयं इस ग्रंथ में आकर प्रतिष्ठित हो गए हैं।
कृष्णावतार में अपनी लीला को परिपूर्ण करके भगवान श्री कृष्ण जब निज धाम जाने लगे तब श्री उद्धव जी के निवेदन करने पर भगवान ने अपने श्री विग्रह को श्रीमद्भागवत में प्रतिष्ठित कर दिया। आचार्य श्री ने आगे कहा कि “भगवतः ईमे भागवतो:” अर्थात भगवान के संबंधियों को ही भागवत कहा जाता है। और उन भगवान के संबंधियों को जिस ग्रंथ में गाई गई है उसी को श्रीमद्भागवत कहते हैं। हमारा पांच प्रकार से भगवान श्री कृष्ण से संबंध स्थापित हो सकता है। शांत भाव, दास भाव, सांख्य भाव, वात्सल्य भाव, माधुर्य भाव। आचार्य श्री ने कहा कि यह एक ऐसा अद्भुत ग्रंथ है जिसमें 6 वक्ता और श्रोता है। भागवत के प्रथम वक्ता नारायण हैं और प्रथम श्रोता ब्रह्मा जी। दूसरे वक्ता स्वयं ब्रह्मा जी और श्रोता नारद जी, तीसरे वक्ता नारद जी और श्रोता वेदव्यास जी, चौथा स्वयं वक्ता बन गए व्यास जी और श्रोता उनके पुत्र शुक्राचार्य (शुकदेव)जी पांचवा वक्ता स्वयं शुकदेव जी और श्रोता परीक्षित जी। इन पांचों वक्ताओं केसर भाव को आत्मसात करके छठा वक्ता बने सूत जी और नैमिषारण्य की पावन भूमि के 88000 ऋषि-मुनियों को या भागवत कथा श्रवण कराई। आचार्य श्री ने कहा कि यह कथा भगवान की प्राप्ति कराती है। और इस कथा के श्रवण के सभी अधिकारी हैं।
जब अनेक जन्मों के पुण्य पुंज का उदय होता है तब मनुष्य को श्रीमद् भागवत कथा के सत्संग की प्राप्ति होती है। सत्संग से अज्ञान जनित मोह और मद रूपी अहंकार का नाश हो जाता है। और विवेक की उत्पत्ति होती है, विवेक से वैराग्य होता है, और वैराग्य से कृष्ण के चरणों में अनुराग होता है और भगवान के चरणों में अनुराग होने पर कन्हैया की प्राप्ति हो जाती है। इससे यह कहा जा सकता है कि इस कथा के श्रवण से सहज में ही परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है। कथा के आयोजक में उदय नारायण यादव, विजय नारायण सिंह, धीरेन्द्र कुमार, अंश कुमार, प्रियव्रत पाण्डेय, अलख पांडेय ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे है।