नव नालंदा महाविहार के सामने तालाब खुदाई के दौरान प्रकट हुई दुर्लभ मां लक्ष्मी

राजगीर (नालंदा दर्पण)। इतिहास के गर्भ में छिपे रहस्यों से भरा प्राचीन नालंदा एक बार फिर सुर्खियों में है। नव नालंदा महाविहार के सामने स्थित तालाब की सफाई और खुदाई के दौरान श्रमिकों को एक प्राचीन प्रतिमा प्राप्त हुई। जिसकी पहचान प्रारंभिक तौर पर मां लक्ष्मी के रूप में की जा रही है। इस खोज ने इतिहास प्रेमियों और पुरातत्वविदों के बीच उत्साह की लहर दौड़ा दी है।

सिलाव प्रखंड अंतर्गत नव नालंदा महाविहार के सामने स्थित इस तालाब की वर्षों से सफाई नहीं हुई थी। जब प्रशासन ने इसकी सफाई और खुदाई का निर्णय लिया तो मजदूरों ने तालाब किनारे जमा मिट्टी को हटाना शुरू किया। इसी दौरान एक कठोर पत्थर से टकराने के बाद जब और गहराई से देखा गया तो वहां एक सुंदर और अलंकृत प्रतिमा दिखाई दी।

प्रारंभिक जांच में विशेषज्ञों ने बताया कि यह प्रतिमा लगभग 50 सेंटीमीटर ऊंची, 33 सेंटीमीटर चौड़ी और 15 सेंटीमीटर गहरी है। प्रतिमा के निर्माण में प्रयुक्त पत्थर अत्यंत मजबूत है, जो इसे लंबे समय तक सुरक्षित बनाए रखने में सहायक रहा होगा। प्रतिमा के शारीरिक स्वरूप और अलंकरण को देखकर इसे पालकालीन कला से जोड़कर देखा जा रहा है।

इस प्रतिमा की सबसे खास बात यह है कि इस पर कई प्राचीन अभिलेख अंकित हैं, जिनमें कुछ अस्पष्ट अक्षर दिखाई दे रहे हैं। इन अभिलेखों की भाषा और लिपि का अध्ययन करने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के ग्राफिक विशेषज्ञों को इसके उच्च-गुणवत्ता वाले चित्र भेजे गए हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह अभिलेख पढ़े जा सके तो नालंदा विश्वविद्यालय और तत्कालीन समय के समाज, धर्म और संस्कृति से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियाँ सामने आ सकती हैं।

खोज की सूचना मिलते ही पुरातत्व विभाग की टीम मौके पर पहुंची और प्रतिमा को सुरक्षित अपने कब्जे में ले लिया। स्थानीय प्रशासन ने इस स्थान की सुरक्षा बढ़ा दी है ताकि कोई अनधिकृत व्यक्ति इस ऐतिहासिक धरोहर को क्षति न पहुंचा सके।

प्रतिमा की खोज से स्थानीय लोगों में भारी उत्सुकता है। आसपास के श्रद्धालु इसे आस्था से जोड़कर देख रहे हैं और वहां पूजा-अर्चना की संभावनाओं पर चर्चा कर रहे हैं। वहीं इतिहास प्रेमियों और शोधकर्ताओं के लिए यह खोज प्राचीन नालंदा और उसके धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व को समझने में एक नई खिड़की खोल सकती है।

विशेषज्ञों के अनुसार यदि इस प्रतिमा का सही काल निर्धारण और अभिलेखों का सही अनुवाद हो जाए तो यह नालंदा के इतिहास में एक नया आयाम जोड़ सकती है। अब सभी की नजरें पुरातत्व विभाग की आगामी रिपोर्ट और अभिलेखों के विश्लेषण पर टिकी हैं। जिससे नालंदा के इस नवीनतम रहस्य का खुलासा हो सकेगा।

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