Bihar Tourism: ऐतिहासिक धरोहरों और सांस्कृतिक वैभव का केंद्र है इस्लामपुर

हिलसा (नालंदा दर्पण संवाददाता)। इस्लामपुर बिहार के नालंदा जिले का एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध पर्यटन क्षेत्र (Bihar Tourism) है। जिसका अंचल कार्यालय वर्ष 1958 में अस्तित्व में आया। इसका मुख्यालय इसलामपुर में स्थापित किया गया। इससे पहले इसलामपुर, एकंगरसराय और हिलसा को मिलाकर एक ही अंचल कार्यालय था, जो 1963 में अलग हो गया।

प्रारंभ में अंचल कार्यालय नगर के हल्का मघड़ा कचहरी में संचालित होता था। लेकिन नवंबर 1964 से इसे प्रखंड भवन में स्थानांतरित कर दिया गया। इस अंचल की सीमाएँ उत्तर में एकंगरसराय, दक्षिण में राजगीर, पूरब में परबलपुर और बेन तथा पश्चिम में जहानाबाद और गया जिले से मिलती हैं।

इसलामपुर प्रखंड का भौगोलिक क्षेत्रफल 85 वर्ग मील है। 2011 की जनगणना के अनुसार यहाँ की जनसंख्या 232300 है। कृषि योग्य भूमि 36009.81 एकड़ है। प्रखंड में 19 ग्राम पंचायतें, 1 नगर परिषद, 9 हल्के और 92 राजस्व ग्राम हैं। नगर परिषद में 26 वार्ड हैं। इसलामपुर में शैक्षणिक और स्वास्थ्य सुविधाओं में एक स्नातक कॉलेज, कोरवा में महिला महाविद्यालय, एक कस्तूरबा विद्यालय, एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और 29 प्राथमिक स्वास्थ्य उपकेंद्र शामिल हैं। इसके अलावा मगही पान अनुसंधान केंद्र और खुदागंज में मगही पान कृषक केंद्र भी यहाँ स्थापित हैं।

इसलामपुर की ऐतिहासिक धरोहरें इसे विशेष बनाती हैं। यहाँ का हथिया बोर तालाब और पक्की तालाब लगभग 150 वर्ष पुराने हैं। स्व. सृजन चौधरी एक प्रमुख जमींदार ने इस तालाब का निर्माण हाथियों को नहलाने के लिए करवाया था। तालाब के भीतर सुरंग की व्यवस्था थी। जिसके माध्यम से पानी हथिया बोर तालाब से मुहाने नदी में जाता था। यह जल प्रबंधन का एक अनूठा नमूना था।

इसके अलावा स्व. चौधरी जहूर शाह ने दिल्ली दरबार नामक दो मंजिला इमारत बनवाई, जो लखनऊ और दिल्ली की वास्तुकला से प्रेरित थी। इसमें बाबन कोठरी, तीरपन दरवाजा, धूप घड़ी, भूलभुलैया, नाचघर, तालाब और एक सुरक्षा गुम्बद शामिल थे। यह गुम्बद प्राचीन तकनीकी का उत्कृष्ट उदाहरण है, जो युद्ध के दौरान सुरक्षा प्रहरी को अभेद्य बनाता था। हालांकि देखरेख के अभाव में यह इमारत जीर्ण-शीर्ण हो चुकी है। फिर भी यह पर्यटकों को आकर्षित करती है।

इसलामपुर का सांस्कृतिक और धार्मिक वैभव भी कम नहीं है। यहाँ की सिद्धपीठ बड़ी दुर्गा माता मंदिर प्रसिद्ध है। दुर्गा पूजा के दौरान जब तक बड़ी दुर्गा माता की मूर्ति का विसर्जन नहीं होता, तब तक नगर में अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियों का विसर्जन नहीं किया जाता। दशहरा यहाँ सभी धर्मों के लोग मिलकर उत्साहपूर्वक मनाते हैं।

काश्मीरीचक में 1947 में कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला ने चादरपोशी के लिए दौरा किया था। जिसके बाद शेख अब्दुल्ला चौक और सड़क का नामकरण हुआ। इसके अतिरिक्त हनुमानगढ़ी मंदिर (चंधारी पंचायत), आत्मा गाँव के प्राचीन मंदिर और बुद्धदेवनगर सूर्य मंदिर जैसे धार्मिक स्थल यहाँ की आध्यात्मिक समृद्धि को दर्शाते हैं। थाना परिसर में हजरत दाता लोदी शाह दिबान की मजार भी आस्था का केंद्र है।

इसलामपुर ने कई उल्लेखनीय व्यक्तित्वों को जन्म दिया है। नालंदा के वर्तमान सांसद कौशलेन्द्र कुमार वेश्वक पंचायत के हैदरचक गाँव के निवासी हैं। उन्होंने भूतपूर्व सांसद जॉर्ज फर्नांडिस के प्रतिनिधि के रूप में कार्य किया और बाद में सांसदीय चुनाव जीता। स्व. डॉ. चाँद बाबू और स्व. जगदीश नंदन जैन जैसे समाजसेवियों की चर्चा आज भी यहाँ के लोग करते हैं।

इसलामपुर में मुहाने नदी और जलवार नदी (बरसाती नदियाँ) खेतों की सिंचाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। पनहर, कोचरा, बौरीडीह और बरदाहा पंचायतों में मगही पान की खेती बड़े पैमाने पर होती है, जो इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था का आधार है।

इसलामपुर अपनी ऐतिहासिक धरोहरों, सांस्कृतिक वैभव और सामाजिक योगदान के लिए जाना जाता है। यहाँ की प्राचीन वास्तुकला, धार्मिक स्थल और प्राकृतिक संसाधन इसे एक अनूठा स्थान बनाते हैं।

हालांकि कुछ धरोहरों की जीर्ण-शीर्ण स्थिति चिंता का विषय है और इनके संरक्षण के लिए प्रयासों की आवश्यकता है। यह नगर न केवल नालंदा जिले का गौरव है, बल्कि बिहार की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है।

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