राजगीर अजातशत्रु किला: इतिहास, वर्तमान और रोचक किस्से-कहानियां

बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। राजगीर बिहार का एक प्राचीन शहर मगध साम्राज्य की राजधानी के रूप में विख्यात रहा। अजातशत्रु किला को राजगीर का किला मैदान के नाम से भी जाना जाता है। जिसे छठी शताब्दी ईसा पूर्व में मगध सम्राट अजातशत्रु द्वारा निर्मित माना जाता है। यह किला मगध साम्राज्य के प्रशासनिक और सैन्य केंद्र के रूप में कार्य करता था। हर्यक वंश के शासक और सम्राट बिम्बिसार के पुत्र अजातशत्रु ने इस किले को अपने साम्राज्य की सुरक्षा और विस्तार के लिए उपयोग किया।

निर्माण और महत्व: किला मैदान लगभग 80 एकड़ में फैला हुआ है और प्राचीन राजगृह (आधुनिक राजगीर) का केंद्रीय हिस्सा था। यह किला अपनी मोटी दीवारों और रणनीतिक स्थिति के लिए प्रसिद्ध था। बताया जाता है कि अजातशत्रु ने अपने सैनिकों का युद्धाभ्यास यहीं करवाया था। किले की दीवारें 15 से 18 फीट मोटी थीं, जो इसे उस समय के सबसे मजबूत किलों में से एक बनाती थीं।

बौद्ध और जैन संबंध: अजातशत्रु के शासनकाल में भगवान बुद्ध को निर्वाण प्राप्त हुआ और उनके अवशेषों पर राजगीर में स्तूप का निर्माण करवाया गया। इसके अलावा सप्तपर्णी गुफा में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन भी अजातशत्रु के समय हुआ। जैन धर्म से भी किले का गहरा नाता है। क्योंकि भगवान महावीर ने राजगीर में 14 वर्ष बिताए थे।

बिम्बिसार का कारागार: किले के पास ही बिम्बिसार का कारागार स्थित है, जहां अजातशत्रु ने अपने पिता बिम्बिसार को कैद किया था। यह स्थान आज भी पर्यटकों के लिए ऐतिहासिक महत्व रखता है।

आज अजातशत्रु किला अपने प्राचीन वैभव को खो चुका है और इसके केवल अवशेष ही बचे हैं। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) ने इस क्षेत्र में खुदाई और क्षति को रोकने के लिए प्रतिबंध लगाए हैं। फिर भी अवैध खुदाई और लूट की घटनाएं सामने आती रही हैं।

पुरातात्विक उत्खनन: वर्ष 1905-06 में अंग्रेजी शासन के दौरान पहली बार किले की खुदाई हुई थी। जिसमें तीन स्तरों में बने भवनों के प्रमाण मिले। 117 वर्षों बाद 2023 में दोबारा खुदाई शुरू हुई। जिससे प्राचीन राजगृह के और रहस्य उजागर होने की उम्मीद है।

पर्यटन स्थल: किला मैदान अब एक खुला मैदान है। जहां टूटी-फूटी दीवारों के अवशेष और कुछ टीले ही बचे हैं। यह राजगीर के अन्य दर्शनीय स्थलों जैसे वेणु वन, स्वर्ण भंडार, और गृद्धकूट पर्वत के साथ पर्यटकों को आकर्षित करता है। स्थानीय लोग और पुरातत्वविद इस किले के संरक्षण के लिए प्रयासरत हैं।

आधुनिक उपयोग: किला मैदान का उपयोग विभिन्न सांस्कृतिक और राजनीतिक आयोजनों के लिए भी किया जाता रहा है। 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने यहां से देश को संबोधित किया था और अटल बिहारी वाजपेयी की काव्य सभा भी यहीं हुई थी।

Rajgir Ajatashatru Fort History, Present and Interesting Stories
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अजातशत्रु किला न केवल अपने ऐतिहासिक महत्व के लिए, बल्कि इससे जुड़े रोचक किस्सों और किंवदंतियों के लिए भी प्रसिद्ध है-

अजातशत्रु और बिम्बिसार का तनाव: सबसे प्रसिद्ध कहानी अजातशत्रु और उनके पिता बिम्बिसार के बीच सत्ता संघर्ष की है। अजातशत्रु ने अपने पिता को सत्ताच्युत कर बिम्बिसार के कारागार में कैद कर दिया था। किंवदंती है कि बिम्बिसार को केवल इतना भोजन दिया जाता था कि वे जीवित रह सकें और उनकी मृत्यु भी कैद में ही हुई।

स्वर्ण भंडार का रहस्य: किले के निकट स्वर्ण भंडार (सोन भंडार) गुफाएं हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि वहां बिम्बिसार का खजाना छिपा है। स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार गुफा की दीवारों पर कुछ रहस्यमय शिलालेख हैं, जो खजाने का रास्ता बताते हैं। लेकिन आज तक कोई इसे खोज नहीं पाया।

जरासंध का अखाड़ा: किला मैदान के पास जरासंध का अखाड़ा भी है, जो महाभारत काल से जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि मगध सम्राट जरासंध यहां अपने सैनिकों को प्रशिक्षण देता था। यह स्थान आज भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।

चीनी यात्री ह्वेनसांग का वर्णन: सातवीं शताब्दी में आए चीनी यात्री ह्वेनसांग ने राजगीर और इसके किले की भव्यता का वर्णन किया। उन्होंने किले की मोटी दीवारों और प्राचीन राजगृह की समृद्धि का उल्लेख किया, जो आज के अवशेषों से मेल खाता है।

लूट और रहस्य: 40 वर्ष पहले किला मैदान की खुदाई में कई बेशकीमती वस्तुएं मिली थीं। जिसके बाद अवैध लूट की घटनाएं बढ़ गईं। स्थानीय लोग मानते हैं कि किला अभी भी कई रहस्य अपने गर्भ में छिपाए हुए है।

Rajgir Ajatashatru Fort History, Present and Interesting Stories
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वेशक अजातशत्रु किला राजगीर के गौरवशाली अतीत का प्रतीक है, जो मगध साम्राज्य की शक्ति और समृद्धि को दर्शाता है। हालांकि आज यह खंडहरों में तब्दील या कहिए कि दफन हो चुका है। फिर भी इसके अवशेष और इससे जुड़ी कहानियां इतिहास प्रेमियों और पर्यटकों को आकर्षित करती हैं।

अब पुरातत्वविदों की नई खुदाई और संरक्षण के प्रयास इसे फिर से जीवंत करने की उम्मीद जगाते हैं। राजगीर का यह किला इतिहास का एक पन्ना तो है ही, बौद्ध, जैन और भारतीय संस्कृति का एक जीवंत साक्ष्य भी है।

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