बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। नालंदा जिले के राजगीर अनुमंडलीय अस्पताल में तैनात लिपिक राजीव कुमार को अल्ट्रासाउंड और पैथोलॉजी क्लिनिकों के निबंधन के नाम पर अवैध राशि वसूलने के गंभीर आरोपों के चलते तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है। यह कार्रवाई नालंदा जिला निगरानी दल की जांच के बाद सामने आए तथ्यों के आधार पर की गई है, जिसमें राजीव कुमार के खिलाफ लगे आरोप सत्य पाए गए।
जिला निगरानी दल द्वारा प्रस्तुत जांच प्रतिवेदन में पाया गया कि राजीव कुमार ने अल्ट्रासाउंड और पैथोलॉजी क्लिनिकों के निबंधन की प्रक्रिया में अनुचित तरीके से राशि वसूली की। इस मामले की गंभीरता को देखते हुए पूर्व में विकास आयुक्त पटना प्रमंडल द्वारा पत्र भेजकर कार्रवाई के निर्देश दिए गए थे। वर्ष 2024 में जारी आदेशों में दोषी लिपिक और संबंधित क्लिनिक संचालकों के खिलाफ विभागीय और कानूनी कार्रवाई की अनुशंसा की गई थी।
हालांकि प्रारंभ में राजीव कुमार के खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं हुई और केवल उनका स्पष्टीकरण मांगकर मामला लंबित रखा गया। इस ढिलाई से प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे थे। लेकिन अब जिला पदाधिकारी नालंदा के पत्रांक 2029/गोपनीय, दिनांक 16.04.2025 के तहत राजीव कुमार को बिहार सेवा संहिता के नियमों के अंतर्गत निलंबित कर दिया गया है।
निलंबन अवधि के दौरान राजीव कुमार का मुख्यालय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, गिरियक निर्धारित किया गया है, जहां उन्हें नियमानुसार जीवन निर्वाह भत्ता प्राप्त होगा। जिला प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही के लिए अलग से आदेश जारी किया जाएगा। साथ ही जांच के दायरे में आए अल्ट्रासाउंड और पैथोलॉजी क्लिनिक संचालकों के खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई शुरू कर दी गई है।
जिला प्रशासन ने संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया है कि इस मामले का अद्यतन प्रतिवेदन तीन दिनों के भीतर जिला कार्यालय में प्रस्तुत किया जाए। यह कदम न केवल दोषियों को दंडित करने की दिशा में उठाया गया है, बल्कि भविष्य में इस तरह की अनियमितताओं को रोकने के लिए भी एक सख्त संदेश देता है।
स्थानीय लोगों और चिकित्सा समुदाय ने इस कार्रवाई का स्वागत किया है। राजगीर निवासी राम बिलास प्रसाद ने कहा, “इस तरह के भ्रष्टाचार से आम जनता का विश्वास प्रशासन पर कम होता है। निलंबन का निर्णय सही दिशा में उठाया गया कदम है।” वहीं चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े एक विशेषज्ञ ने बताया कि अल्ट्रासाउंड और पैथोलॉजी जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में अवैध वसूली न केवल अनैतिक है, बल्कि यह मरीजों की सुरक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है।
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