बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। नालंदा जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था खासकर बिहारशरीफ मॉडल हॉस्पिटल को सुदृढ़ करने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने सभी प्रकार के संसाधन उपलब्ध कराए हैं। कमी को दूर करने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन मॉनिटरिंग के अभाव में इन संसाधनों का समुचित उपयोग नहीं हो पा रहा है। बिहारशरीफ के मॉडल हॉस्पिटल में शवों को सुरक्षित रखने के लिए मुर्दाघर की व्यवस्था की गई थी। लेकिन इसका संचालन ठप होने के कारण यह सुविधा अब जिंदा लोगों के अवैध कब्जे का शिकार हो चुकी है। इतना ही नहीं, पोस्टमार्टम के लिए बनाए गए भवन का भी यही हाल है, जो आज नशेड़ियों और जुआरियों का अड्डा बन गया है।
जानकारी के अनुसार पोस्टमार्टम के लिए वर्ष 2015 में एक आधुनिक भवन का निर्माण कराया गया था। इस भवन में चिकित्सक कक्ष, एक्स-रे रूम, कोल्ड रूम, नर्स रूम जैसी सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराई गई थीं। लेकिन संसाधनों की कमी और उचित देखरेख के अभाव में यह भवन आज तक अपने उद्देश्य को पूरा नहीं कर सका। शुरूआती दो वर्षों तक यह भवन खाली पड़ा रहा। लेकिन धीरे-धीरे असामाजिक तत्वों ने इस पर कब्जा जमा लिया। अब यहाँ दिन-रात शराबखोरी और जुआ खेलने का सिलसिला चलता है। भवन के आगे के हिस्से में आवास की तरह उपयोग हो रहा है। जबकि पीछे के कमरों में शराब और जुआ का दौर चलता रहता है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि इस भवन में किसी अधिकारी का आना-जाना नहीं होता। जिसके कारण यह असामाजिक गतिविधियों का केंद्र बन गया है। अगर समय रहते विभाग ने संसाधन उपलब्ध कराए होते या इस भवन को किसी अन्य कार्य के लिए उपयोग में लाया होता तो इसकी ऐसी दुर्दशा न होती। यह स्थिति न केवल स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही को उजागर करती है, बल्कि सरकारी संसाधनों के दुरुपयोग का भी जीता-जागता उदाहरण है।
बीते दिन मॉडल हॉस्पिटल की व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए जिला स्वास्थ्य प्रबंधक (डीपीएम) ने सदर अस्पताल का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने अनुपयोगी पड़े मुर्दा घर और पोस्टमार्टम भवन की दयनीय स्थिति को देखा। अवैध कब्जे और असामाजिक गतिविधियों को देखकर डीपीएम ने कड़ा रुख अपनाया और 24 घंटे के भीतर भवन को खाली करने का निर्देश दिया। डीपीएम ने बताया कि सदर अस्पताल को मॉडल हॉस्पिटल में स्थानांतरित कर दिया गया है। अब पोस्टमार्टम हाउस को भी मॉडल हॉस्पिटल के नजदीक शिफ्ट करने की योजना है। ताकि चिकित्सकों को सुविधा हो और इस भवन का समुचित उपयोग हो सके।
यह स्थिति नालंदा जिले की स्वास्थ्य सेवाओं में व्याप्त अव्यवस्था को दर्शाती है। सवाल यह है कि जब लाखों रुपये खर्च करके भवन और सुविधाएं तैयार की गई थीं तो उनका उपयोग क्यों नहीं हो सका? विभागीय उदासीनता और मॉनिटरिंग की कमी ने न केवल इन सुविधाओं को बर्बाद किया, बल्कि असामाजिक तत्वों को खुली छूट भी दी। अब देखना यह है कि डीपीएम के निर्देशों का कितना पालन होता है और यह भवन कब तक अपने मूल उद्देश्य को पूरा कर पाता है।
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