बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। राष्ट्रीय स्तर के प्रतिभाशाली दिव्यांग खिलाड़ी सार्थक राज को इस गणतंत्र दिवस के मौके पर राजभवन में सम्मानित किया जाएगा। राजभवन की ओर से उन्हें इस विशेष अवसर के लिए आमंत्रण मिला है। महज 12 वर्ष की आयु में डाउन सिंड्रोम जैसी गंभीर अनुवांशिक बीमारी से जूझते हुए सार्थक ने अपनी मेहनत और लगन से खेल जगत में मिसाल कायम की है।
उनके पिता रवि कुमार, जो प्राइवेट नौकरी करते हैं। उन्होंने अपने बेटे को खेल के क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए हरसंभव प्रयास या है। सार्थक ने सॉफ्टबॉल थ्रो में स्वर्ण पदक जीतकर अपने गांव, राज्य और परिवार का नाम गौरवान्वित किया है।उनकी खेल यात्रा 2023 में मुजफ्फरपुर में आयोजित राज्य स्तरीय पैरालंपिक खेल प्रतियोगिता से शुरू हुई थी और तब से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
कोच कुंदन कुमार पांडेय बताते हैं कि सार्थक ने ग्वालियर स्थित अटल बिहारी वाजपेयी दिव्यांग स्टेडियम में आयोजित राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में गोल्ड और सिल्वर मेडल जीते। हाल ही में 16 जनवरी को हरनौत फुटबॉल स्टेडियम में आयोजित जिला स्तरीय खेल प्रतियोगिता में उन्होंने शॉट पुट और दौड़ में गोल्ड मेडल अपने नाम किया।
अब सार्थक आगामी 1 और 2 फरवरी को पटना के पाटलिपुत्र खेल स्टेडियम में होने वाली राज्य स्तरीय खेल प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वाले हैं। यह उनकी सफलता की नई सीढ़ी साबित होगी। गणतंत्र दिवस पर राजभवन से मिले इस सम्मान ने पूरे समाज को गर्वित किया है।
कोच कुंदन पांडेय ने बताया कि दिव्यांगजन भी खेल के माध्यम से अपनी पहचान बना सकते हैं। बस उन्हें सही दिशा और प्रोत्साहन की आवश्यकता है। उन्होंने समाज के जागरूक वर्ग से अपील की कि ऐसे होनहार खिलाड़ियों की मदद के लिए आगे आएं। सार्थक की इस असाधारण यात्रा में उनके परिवार और कोच की अहम भूमिका रही है।
पिता रवि कुमार ने बताया कि सार्थक ने अपनी कड़ी मेहनत और समर्पण से यह मुकाम हासिल किया है। वहीं कोच कुंदन पांडेय ने बताया कि सार्थक न केवल प्रतिभावान हैं, बल्कि वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी देश का नाम रोशन कर सकते हैं।
सार्थक राज की कहानी केवल दिव्यांगजनों के लिए नहीं, बल्कि हर व्यक्ति के लिए प्रेरणादायक है। यह साबित करता है कि अगर इरादे मजबूत हों तो जीवन की कोई भी चुनौती आपको रोक नहीं सकती। गणतंत्र दिवस पर राजभवन में उनका सम्मान उनके अदम्य साहस और मेहनत का प्रतीक है।
यह सम्मान न केवल सार्थक के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक संदेश है कि दिव्यांगजन भी अपनी मेहनत और लगन से असाधारण उपलब्धियां हासिल कर सकते हैं। सार्थक की सफलता उनके सपनों और उनके संघर्ष का परिणाम है। समाज और सरकार से यह उम्मीद है कि वे इस तरह के उभरते खिलाड़ियों को हर संभव समर्थन और अवसर प्रदान करेंगे।
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