बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। बिहार शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव (ACS) डॉ. एस. सिद्धार्थ का नालंदा जिला का कथित गोपनीय दौरा अपने आप में कई सवाल खड़े करता है। बताया जा रहा है कि यह औचक निरीक्षण था। लेकिन इसकी हर गतिविधि का वीडियो फुटेज मीडिया में वायरल हो गया। इससे संदेह होता है कि क्या वाकई यह निरीक्षण बिना पूर्व सूचना के था या फिर इसे एक मीडिया इवेंट के तहत सुनियोजित तरीके से प्रचारित किया गया?
नूरसराय प्रखंड के उच्च माध्यमिक विद्यालय सरदार बिगहा से शुरू हुए इस दौरे में एसीएस ने चेतना सत्र में भाग लिया। हालांकि शिक्षकों द्वारा उन्हें पहचान लेने और खबर सोशल मीडिया पर फैल जाने के बाद पूरा निरीक्षण सार्वजनिक चर्चा का विषय बन गया। सवाल यह उठता है कि यदि यह निरीक्षण औचक था तो मीडिया को इसकी हर गतिविधि की सटीक जानकारी कैसे मिल रही थी?
निरीक्षण के दौरान एसीएस ने विभिन्न स्कूलों में पठन-पाठन, आधारभूत संरचना, मध्यान्ह भोजन योजना और अन्य व्यवस्थाओं की समीक्षा की। उन्होंने बच्चों से संवाद किया। उनकी किताबें और कॉपियां देखीं और शिक्षकों से पढ़ाई के तरीकों पर चर्चा की। लेकिन सबसे रोचक पहलू यह रहा कि उनकी हर गतिविधि मीडिया द्वारा कैद की जा रही थी और वीडियो तुरंत वायरल हो रहे थे।
निरीक्षण के दौरान कुछ बच्चों ने अतिरिक्त ट्यूशन लेने की बात स्वीकार की। जबकि स्कूल ड्रेस में बच्चियों के सड़क पर घूमने के दृश्य भी सामने आए। एसीएस ने उन्हें स्कूल भेजने की पहल की। लेकिन यह सवाल बना रहता है कि क्या यह समस्या केवल निरीक्षण के दौरान ही सामने आई या यह पहले से ही प्रशासन की जानकारी में थी?
कहते हैं कि जैसे ही एसीएस के दौरे की खबर फैली, जिला शिक्षा पदाधिकारी सहित अन्य विभागीय अधिकारी तुरंत सक्रिय हो गए और निरीक्षण स्थलों पर पहुंचने लगे। इससे यह आभास होता है कि पूरी व्यवस्था पूर्व निर्धारित थी। यदि निरीक्षण औचक था तो अधिकारियों की इतनी तेजी से प्रतिक्रिया कैसे संभव हुई?
निरीक्षण के दौरान एसीएस डॉ. एस. सिद्धार्थ संतुष्ट नजर आए और उन्होंने शिक्षकों को बच्चों की शिक्षा में सुधार के लिए प्रेरित किया। लेकिन यह सवाल अनुत्तरित रह जाता है कि क्या यह दौरा वास्तव में सरकारी विद्यालयों की वास्तविक स्थिति सुधारने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था या फिर एक नियोजित मीडिया इवेंट?
बहरहाल, नालंदा जिले में सरकारी शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए इस तरह के निरीक्षण आवश्यक हैं। लेकिन उनकी पारदर्शिता और प्रभावशीलता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। यदि निरीक्षण वास्तव में औचक होता तो इसकी रिपोर्टिंग और प्रचार इतनी सुव्यवस्थित नहीं होती। ऐसे में क्या यह केवल एक दिखावटी निरीक्षण था या फिर बिहार की शिक्षा व्यवस्था में सुधार की एक वास्तविक पहल? यह प्रश्न स्वविवेक पर छोड़ देना ही उचित होगा।