राजगीर (नालंदा दर्पण)। बिहार और झारखंड के बीच रेलवे कनेक्टिविटी को और सशक्त बनाने वाला राजगीर-कोडरमा भाया तिलैया रेल खंड अगस्त 2025 से ट्रेनों की आवाजाही के लिए तैयार हो जाएगा। इस बहुप्रतीक्षित रेल परियोजना के बचे हुए कार्यों को तेज़ी से पूरा किया जा रहा है। जिससे क्षेत्र के यात्रियों और पर्यटकों को एक नया रोमांचक सफर मिलने वाला है।
इस 110 किलोमीटर लंबे रेलखंड का अधिकांश कार्य पूरा हो चुका है। लेकिन अभी भी कुछ महत्वपूर्ण सेक्शन पर काम जारी है। राजगीर से तिलैया (46 किमी) खंड पर पहले से ट्रेनें चल रही हैं। तिलैया से खरौद (24 किमी) निर्माण कार्य पूर्ण हो गया है। सीआरएस और स्पीड ट्रायल भी हो चुका है। खरौद से झराही (17 किमी) रेलवे ट्रैक का निर्माण हो चुका है।
झराही से कोडरमा (23 किमी) इस खंड का कार्य अंतिम चरण में है। इस रेलखंड पर कुल चार सुरंग और सात बड़े ब्रिज बनाए जा रहे हैं। सबसे लंबी सुरंग 3.5 मीटर की होगी। जिसका 80 फीसदी कार्य पूरा हो चुका है। अन्य सुरंगों और पुलों का निर्माण दिसंबर 2024 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।
यह रेलखंड घने जंगलों, सुरंगों और पहाड़ियों के बीच से गुजरेगा। जिससे यात्रियों को एक अनोखा अनुभव मिलेगा। हरी-भरी वादियां, जंगली पशु-पक्षियों की चहचहाहट और प्राकृतिक सौंदर्य इसे एक पर्यटन-अनुकूल रेलमार्ग बना देगा।
इस रेलखंड से राजगीर, नालंदा, पावापुरी और ककोलत जैसे ऐतिहासिक व प्राकृतिक पर्यटन स्थल सीधे जुड़ जाएंगे। जिससे झारखंड और पश्चिम बंगाल से आने वाले पर्यटकों को सुविधा मिलेगी।
रेलमार्ग के पूरा होने से बिहार और झारखंड के बीच व्यापार को बढ़ावा मिलेगा। यह क्षेत्र मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है और नई रेल सेवा से किसानों को अपने उत्पाद झारखंड के बाजारों (रांची, धनबाद, कोडरमा आदि) में आसानी से भेजने का अवसर मिलेगा।
इसके अलावा राजगीर, नवादा, गया, शेखपुरा, नालंदा जिलों के लोगों के लिए यह रेल मार्ग वरदान साबित होगा। जिससे कोडरमा और रांची जाना और आसान हो जाएगा।
इस परियोजना को 2004 में मंजूरी मिली थी। लेकिन भूमि अधिग्रहण, किसानों को मुआवजा भुगतान और वन विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र मिलने में देरी के कारण निर्माण में बाधाएं आईं। यह प्रोजेक्ट चार फेज में बंटा था। जिसमें राजगीर-तिलैया सेक्शन पहले ही पूरा हो चुका है।
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