बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। बिहार सरकार ने सरकारी स्कूलों की लाइब्रेरी को मजबूत और अधिक समृद्ध बनाने की दिशा में एक अहम कदम उठाया है। बिहार शिक्षा परियोजना परिषद ने निर्णय लिया है कि अब विद्यालयों के पुस्तकालयों में स्थानीय भाषाओं की पुस्तकें भी शामिल की जाएंगी। इससे छात्रों को अपनी मातृभाषा में पढ़ने और सीखने का अवसर मिलेगा। इस पहल से क्षेत्रीय भाषाओं की पहचान बनी रहेगी और नई पीढ़ी को अपनी भाषा और संस्कृति से जुड़ने की प्रेरणा मिलेगी।
नए सत्र से प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में कक्षा 1 से 8 तक और उच्च माध्यमिक विद्यालयों में कक्षा 9 से 12 तक की लाइब्रेरी में हिंदी के साथ-साथ मैथिली, भोजपुरी, अंगिका, बज्जिका, मगही, सूर्यापूरी (जनजातीय भाषा), उरांव भाषा की पुस्तकें उपलब्ध कराई जाएंगी।
बच्चों को ज्ञानवर्धक और मनोरंजक सामग्री उपलब्ध कराने के लिए पुस्तकालयों में कई विषयों की पुस्तकें रखी जाएंगी। जैसे- पर्यावरण और नैतिक शिक्षा। राष्ट्रीय और सामाजिक मूल्य। नेतृत्व क्षमता और स्वावलंबन पर आधारित किताबें। महापुरुषों की जीवनी। देशभक्ति और इतिहास से जुड़ी पुस्तकें। भूगोल, तर्कशास्त्र और कला-संस्कृति की किताबें। प्रतियोगी परीक्षाओं से संबंधित अध्ययन सामग्री (कक्षा 9-12 के लिए)।
सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि पुस्तकालय में कोई भी ऐसी किताब नहीं रखी जाएगी, जो जाति, धर्म या संप्रदाय विशेष की भावनाओं को ठेस पहुंचाती हो। केवल वही पुस्तकें शामिल की जाएंगी, जो छात्रों को नैतिकता, ज्ञान और सृजनात्मकता से जोड़ती हों।
लाइब्रेरी को साफ-सुथरा और व्यवस्थित रखने की जिम्मेदारी विद्यालय के प्रधानाध्यापक और शिक्षकों को दी गई है। सभी कक्षाओं की पाठ्यपुस्तकों का एक सेट भी पुस्तकालय में उपलब्ध रहेगा, ताकि जरूरत पड़ने पर छात्र उनका उपयोग कर सकें।
इससे छात्रों को अपनी मातृभाषा में पढ़ने और सीखने का अवसर मिलेंगे। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में मदद मिलेगी। उनमें सामाजिक, नैतिक और सांस्कृतिक ज्ञान का विस्तार होगा। यह उनमें शिक्षा को रोचक और सुलभ बनाने की पहल है।
इस कदम को राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) के अनुरूप माना जा रहा है। जिसमें मातृभाषा में पढ़ाई को बढ़ावा देने की बात कही गई है। यह पहल बिहार के लाखों छात्रों को अपनी जड़ों से जोड़ने और स्थानीय भाषाओं के संरक्षण में अहम भूमिका निभाएगी।
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