राजगीर (नालंदा दर्पण)। भारत में जनसंख्या के हिसाब से सबसे बड़ी आबादी रखने वाली कुर्मी जाति ने राजगीर आरआईसीसी सभागार में दो दिवसीय कुर्मी समागम चेतना शिविर (Rajgir Kurmi Awareness Camp) का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में नेपाल सहित देश के विभिन्न राज्यों से प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
कार्यक्रम का उद्घाटन दीप प्रज्ज्वलन के साथ किया गया। उसके बाद अखिल भारतीय कुर्मी क्षत्रिय महासभा के वक्ताओं ने समाज की एकजुटता पर बल दिया और बताया कि देश की कुल आबादी 144.17 करोड़ में से लगभग 35 करोड़ यानी 25 फीसदी कुर्मी जाति के लोग हैं। उन्होंने कहा कि नालंदा ऐतिहासिक रूप से सत्ता का केंद्र रहा है और आज भी इसकी भूमिका महत्वपूर्ण बनी हुई है।
वक्ताओं ने कहा कि देश में कुर्मी जाति की 1488 उपजातियां हैं। उन्हें एक मंच पर लाकर सामाजिक सुधार किया जा सकता है। समाज में कुरीतियों को मिटाने, उपजातियों को जोड़ने और संगठन को सशक्त बनाने से ही पुरानी गौरवशाली परंपरा को पुनर्जीवित किया जा सकता है।
महासभा द्वारा दहेज प्रथा के उन्मूलन, अंतर्राज्यीय विवाह और सामूहिक शादियों को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया। संगठन ने अब तक आठ राज्यों में 1600 से अधिक सामूहिक विवाह बिना दहेज के संपन्न कराए हैं। साथ ही मृत्यु भोज जैसी कुप्रथाओं को समाप्त करने पर भी बल दिया गया। ताकि समाज को आर्थिक नुकसान से बचाया जा सके।
कार्यक्रम में वक्ताओं ने बताया कि भारत के विभिन्न राज्यों में कुर्मी संगठन सक्रिय हैं। उन्होंने कृषि और आर्थिक विकास के लिए व्यवसाय पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर बल दिया। महाराष्ट्र में कुर्मी आबादी फीसदी, गुजरात में 30 फीसदी और बिहार में 22 फीसदी है। जिससे यह जाति एक मजबूत सामाजिक और राजनीतिक ताकत बन सकती है।
वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि देश में कुर्मी जाति की आबादी के अनुपात में उन्हें राजनीतिक भागीदारी नहीं मिल रही है। वर्तमान में देशभर में 101 लोकसभा सांसद, 15 राज्यसभा सदस्य और 6 मुख्यमंत्री कुर्मी जाति से आते हैं।
राजगीर की ऐतिहासिकता पर चर्चा करते हुए वक्ताओं ने कहा कि राजगीर दुनिया का सबसे पुराना नगर है और इसकी भौगोलिक सीमा को अंग्रेज भी नहीं छू सके थे। उन्होंने महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि 21वीं सदी महिलाओं की सदी है और उन्हें संगठन को मजबूत करने में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
वक्ताओं ने कहा कि बिहार के लोग गुजराती, मराठी, तमिल, कन्नड़, ओड़िया जैसी भाषाएं सीखें और अन्य राज्यों के लोग हिंदी सीखें तो इससे कुर्मी समाज को और मजबूती मिलेगी। गुजरात के पटेल समुदाय की तरह बिहार और अन्य राज्यों के कुर्मी परिवारों को ग्लोबल पहचान बनाने की जरूरत है।
कार्यक्रम के समापन पर वक्ताओं ने कहा कि कुर्मी जाति का इतिहास गौरवशाली है और सरदार वल्लभभाई पटेल की नीतियों पर चलकर ही संगठन को एक छत के नीचे लाया जा सकता है। इस चेतना शिविर से समाज में नई ऊर्जा और दिशा मिलने की उम्मीद जताई गई।
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