वीटीआर के सघन जंगल में विराजमान कोट माई मंदिर‌ शुरू हुआ 72 घंटे का अखंड राम नाम संकीर्तन

वाल्मीकि नगर से विवेक कुमार सिंह की रिपोर्ट..

जन सहयोग से आयोजित इस यज्ञ के लिए 551 कन्याओं ने गंडक नदी के कालीघाट से भरा जल

गंडक नदी के कालीघाट पर रविवार की दोपहर आस्था का जन सैलाब देखने को मिला।

वाल्मीकिनगर। थाना क्षेत्र के भेड़िहारी जंगल में विराजमान कोट माई मंदिर परिसर में 72 घंटे होने वाले राम नाम संकीर्तन के लिए श्रद्धालुओं का जन सैलाब गंडक नदी के किनारे कलश यात्रा में दिखाई दिया। इस कलश यात्रा में लक्ष्मीपुर रमपुरवा, संतपुर सोहरिया, और चंपापुर गनौली के लोगों के साथ-साथ इन पंचायतों के 551 कन्याओं ने कलश यात्रा निकाल गंडक नदी से जल भरा। इस यात्रा में अष्टयाम समिति के अध्यक्ष हंसराज उरांव, कोषाध्यक्ष राजलाल महतो , सचिव नागेंद्र शाह, रामविलास यादव, रुदल यादव, जितेंद्र यादव के साथ अन्य श्रद्धालु शामिल रहे। इस ऐतिहासिक कलश यात्रा में सबसे बड़ी चीज यह देखने को मिली कि, यात्रा में शामिल सभी श्रद्धालुओं ने जम्मू कश्मीर के पहलगाम में मारे गए 28 लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त कर जय श्री राम की जय घोष के साथ हिंदू एकता जिंदाबाद के नारे लगाए गए। हिंदू और हिंदुत्व की रक्षा के लिए कलश यात्रा में शामिल महिला एवं पुरुषों ने जय जय श्री राम का जय घोष लगा, सनातन धर्म की रक्षा के लिए लोगों के अंदर जागरूकता पैदा किया। अध्यक्ष हंसराज उरांव ने बताया कि जन सहयोग से आयोजित इस यज्ञ के कलश यात्रा में दो पहिया और चार पहिया वाहनों की संख्या 100 है। वहीं इस कलश यात्रा में 1000 से ज्यादा लोग शामिल हुए हैं। हम सभी सनातनियों को इस यज्ञ में आने का निमंत्रण देते हैं।

72 घंटे होने वाले अखंड राम नाम संकीर्तन में लगभग 10 लाख रुपए होते हैं खर्च

वीटीआर के भेड़िहारी जंगल में प्रत्येक साल हिंदू समुदाय के लोगों द्वारा आयोजित की जाने वाली अखंड अष्टयाम में लगभग 10 लाख रुपए खर्च किए जाते हैं। पिछले साल 48 घंटे का अखंड अष्टयाम कराया गया था। इस साल समिति के सदस्यों द्वारा 72 घंटे तक राम नाम संकीर्तन करने का फैसला लिया गया है। जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु प्रतिदिन पहुंचते हैं, और 24 घंटे भंडारा का भी आयोजन किया जाता है।

मिट्टी के टीले में निवास करती है कोट माई

वीटीआर के भेड़िहारी जंगल के बीच भक्तों की रक्षा करने वाली कोट माई मिट्टी के टीले में निवास करती है। सैकड़ो वर्ष पुराना यह स्थान आज भी झोपड़ी में है। वन विभाग के अंदर आने के कारण भक्त उसे मंदिर का रूप नहीं दे सके हैं। लेकिन कोट माई झोपड़ी में रहकर ही अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ती है।

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