स्थानीय और छोटी गोष्ठियां ही भाषा और साहित्य के विकास और संचार के सशक्त माध्यम हैं: जावेद इकबाल

स्थानीय और छोटी गोष्ठियां ही भाषा और साहित्य के विकास और संचार के सशक्त माध्यम हैं: जावेद इकबाल

Chhapra: स्थानीय और छोटी गोष्ठियां ही भाषा और साहित्य के विकास और संचार के सशक्त माध्यम हैं. यह कार्यशाला और विद्यालय के रूप में कार्य करती हैं. उक्त बातें उर्दू काउंसिल की सारण जिला शाखा के तत्वावधान में आयोजित साहित्यिक गोष्ठी के मुख्य अतिथि उप निर्वाचन पदाधिकारी जावेद एकबाल ने कहीं.

उन्होंने कहा कि गोष्ठियां ऐसी अवसर होती हैं जहां स्थापित रचनाकार अपनी कृति को प्रयोगशाला की तरह परख सकते हैं. दूसरी ओर यहां नई पीढ़ी प्रशिक्षित होती हैं. साहित्य की समझ, भाषा की पकड़, सृजनात्मकता, उच्च चरित्र और नैतिक मूल्य आदि गुण विकसित होते हैं. यूं कहें कि साहित्यिक गोष्ठियां सभ्य समाज की जीवन रेखा हैं. कार्यक्रम के अध्यक्ष जेपी विश्वविद्यालय के उर्दू विभागाध्यक्ष प्रो मजहर किबरिया ने कहा कि वर्तमान तेज रफ्तार और डिजिटल युग में साहित्यिक महफिलों की महत्ता और उपयोगिता और भी बढ़ गई हैं. यूट्यूब, फेसबुक, एक्स और अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म से प्रशिक्षण संभव नहीं. क्योंकि वहां ऐसे बुजुर्ग, शिक्षक या कला विशेषज्ञ नहीं जो आपकी आलोचना और सुधार करने के लिए मौजूद हों. वे तत्काल अपनी बहुमूल्य राय दें. आपकी रचना, भाषा और आचार-व्यावहार को संपादित कर सकें.

मेजबान डॉ. मोअज्जम अज्म ने मुख्य अतिथि और अध्यक्ष के साथ विशिष्ट अतिथि प्रो डॉ अलाउद्दीन खान, प्रो अब्दुल सलाम अंसारी, अरशद परवेज मुन्नी और मो हाशिम का स्वागत करते हुए मंचासीन कराया. कृष्ण मेनन ने अपनी मखमली आवाज से माहौल बनाया तो शमीम परवेज ने अपने शेर ‘आंधियों में चराग-ए-वफा हम जलाते रहेंगे सदा, तेरी औकात ऐ जुल्मतों हम बताते रहेंगे सदा’ से ठंड में गर्मी का एहसास कराया. डॉ अज्म ने ‘मौत को जिंदगी बनाने में, हम लगे हैं तुझे मनाने में’ से खूब वाह वाही बटोरी. जावेद एकबाल ने जब अपनी रचना ‘अमीर-ए-हुस्न ने वादा ही बार-बार किया, गदा-ए-इश्क ने हर बार एतबार किया’ पेश किया तो महफिल वाह, बहुत खूब की सदा से गूंज उठी.

शहजाद अहमद ने शब्दों का जादू बिखेरा’ तलाशता हूं अपना वजूद मैं खुद, बावजूद इसके के बा-वजूद हूं मैं’ डॉ किबरिया की रचना को भी खूब पसंद किया गया ‘दुश्मन को करें कत्ल न अब जहर किया जाए, बेहतर है उसको नजर अंदाज किया जाए’ इनके अलावा जिन कवियों की रचनाओं को खूब पसंद किया गया.

उनमें रवि भूषण हंसमुख, शाहिद जमाल, अली अब्बास, डॉ अब्दुस समद भयंकर आदि उल्लेखनीय हैं. गोष्ठी में भाषा प्रेमी अबुल कलाम अंसारी, एडवोकेट तैय्यब अली, अरसलान आलम, अनवार आलम आदि मौजूद थे. शकील अनवर ने खूबसूरती के साथ का संचालन किया.

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