बसंत पंचमी: ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती को समर्पित पर्व

बसंत पंचमी पर विशेष

– योगेश कुमार गोयल

माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी ‘बसंत पंचमी’ के रूप में देशभर में धूमधाम से मनाई जाती रही है, जो इस वर्ष 2 फरवरी को मनाई जा रही है। इस वर्ष पंचांग के अनुसार, पंचमी तिथि 2 फरवरी को सुबह 9 बजकर 14 मिनट पर आरंभ होगी और 3 फरवरी को सुबह 6 बजकर 52 मिनट पर समाप्त होगी, इसलिए बसंत पंचमी का पर्व इस साल 2 फरवरी को मनाया जा रहा है। 2 फरवरी को बसंत पंचमी की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 7 बजकर 1 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक रहेगा। सरस्वती पूजा का मुहूर्त प्रातः 7 बजकर 8 मिनट से प्रारंभ होगा और दोपहर 12 बजकर 34 मिनट तक रहेगा। बसंत पंचमी मध्याह्न का क्षण दोपहर 12ः34 बजे होगा। इस वर्ष बसंत पंचमी पर भद्रा का साया रहने वाला है। भद्रा सुबह 7 बजकर 8 मिनट पर आरंभ होगी और सुबह 9 बजकर 14 मिनट तक रहेगी। ज्योतिष शास्त्र में भद्रा को शुभ व मांगलिक कार्यों के लिए शुभ नहीं माना गया है।

माना जाता है कि बसंत पंचमी का दिन बसंत ऋतु के आगमन का सूचक है। शरद ऋतु की विदाई और बसंत के आगमन के साथ समस्त प्राणीजगत में नवजीवन एवं नवचेतना का संचार होता है। वातावरण में चहुं ओर मादकता का संचार होने लगता है। प्रकृति के सौंदर्य में निखार आने लगता है। शरद ऋतु में वृक्षों के पुराने पत्ते सूखकर झड़ जाते हैं, लेकिन बसंत की शुरुआत के साथ ही पेड़-पौधों पर नयी कोंपलें फूटने लगती हैं। चारों ओर रंग-बिरंगे फूल खिल जाते हैं, वातावरण महकने लगता है। बसंत पंचमी के ही दिन होली का उत्सव भी आरंभ हो जाता है और इस दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है।

साहित्य और संगीत प्रेमियों के लिए बसंत पंचमी का विशेष महत्व है, क्योंकि यह ज्ञान और वाणी की देवी सरस्वती की पूजा का पवित्र पर्व माना गया है। बच्चों को इस दिन से बोलना या लिखना सिखाना शुभ माना गया है। संगीतकार इस दिन अपने वाद्य यंत्रों की पूजा करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन विद्या और बुद्धि की देवी मां सरस्वती अपने हाथों में वीणा, पुस्तक व माला लिए अवतरित हुईं थी। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में इस दिन लोग विद्या, बुद्धि और वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा-आराधना करके अपने जीवन से अज्ञानता के अंधकार को दूर करने की कामना करते हैं। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने बसंत पंचमी के दिन ही प्रथम बार देवी सरस्वती की आराधना की थी और कहा था कि अब से प्रतिवर्ष बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा होगी और इस दिन को मां सरस्वती के आराधना पर्व के रूप में मनाया जाएगा।

प्राचीन काल में बसंत पंचमी को प्रेम के प्रतीक पर्व के रूप में ‘वसंतोत्सव’, ‘मदनोत्सव’, ‘कामोत्सव’ अथवा ‘कामदेव पर्व’ के रूप में मनाए जाने का भी उल्लेख मिलता है। इस संबंध में मान्यता है कि इसी दिन कामदेव और रति ने पहली बार मानव हृदय में प्रेम की भावना का संचार कर उन्हें चेतना प्रदान की थी, ताकि वे सौन्दर्य और प्रेम की भावनाओं को गहराई से समझ सकें। इस दिन रति पूजा का भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि कामदेव ने बसंत ऋतु में ही पुष्प बाण चलाकर समाधिस्थ भगवान शिव का तप भंग करने का अपराध किया था, जिससे क्रोधित होकर उन्होंने अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से कामदेव को भस्म कर दिया था। बाद में कामदेव की पत्नी रति की प्रार्थना और विलाप से द्रवित होकर भगवान शिव ने रति को आशीर्वाद दिया कि उसे श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में अपना पति पुनः प्राप्त होगा।

‘बसंत पंचमी’ को गंगा का अवतरण दिवस भी माना जाता है। इसलिए धार्मिक दृष्टि से बसंत पंचमी के दिन गंगा स्नान करने का बहुत महत्व माना गया है। बसंत पंचमी को ‘श्रीपंचमी’ भी कहा गया है। कहा जाता है कि इस दिन का स्वास्थ्य वर्षभर के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। अतः इस पर्व को स्वास्थ्यवर्धक एवं पापनाशक भी माना गया है।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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