छपरा नगर निगम की विशेष अनुमति याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज


CHHAPRA DESK –  सुप्रीम कोर्ट ने छपरा नगर निगम द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका (SLP) नंबर 4556/2025 को खारिज कर दिया है. यह याचिका पटना उच्च न्यायालय के 30 जनवरी 2025 के आदेश के खिलाफ दायर की गई थी. न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई ठोस आधार नहीं है. इस निर्णय से पटना उच्च न्यायालय का आदेश बरकरार रहा, जिससे प्रभावित लोगों को राहत मिली है.

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रजिस्ट्री पर लगी थी रोक

राज्य सरकार ने गंगा तटवर्ती भूमि को “टोपो लैंड” घोषित कर दिया था, जिसके चलते छपरा नगर निगम क्षेत्र में मौना चौक से लेकर काशी बाजार तक की भूमि को असर्वेक्षित मानते हुए उसकी रजिस्ट्री और दाखिल-खारिज पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई थी. इस निर्णय से हजारों लोग प्रभावित हुए, जो अपनी जमीन का मालिकाना हक साबित नहीं कर पा रहे थे. इससे न केवल जमीन की खरीद-बिक्री प्रभावित हुई, बल्कि बैंक लोन, मकान निर्माण, और अन्य कानूनी प्रक्रियाओं में भी बाधाएं उत्पन्न हुईं.


विधवाओं की जमीन रजिस्ट्री में भी अड़चनें

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद, विधवाओं की जमीन रजिस्ट्री में भी समस्याएं बनी रहीं. सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि विधवाओं की जमीन रजिस्ट्री से पहले अनुमंडल पदाधिकारी या समकक्ष अधिकारी की रिपोर्ट आवश्यक होगी, जिसमें यह सुनिश्चित किया जाए कि संबंधित विधवा बिना किसी दबाव के अपनी संपत्ति बेच रही है. हालांकि, छपरा सदर अनुमंडल में इस प्रक्रिया में देरी के कारण 225 से अधिक मामलों में रजिस्ट्री लंबित पड़ी रही, जिससे विधवाओं को अपनी संपत्ति का लाभ उठाने में कठिनाई हुई.

दाखिल-खारिज में देरी और इसके प्रभाव

दाखिल-खारिज की प्रक्रिया में देरी के कारण लोगों को अपने मकान बनाने के लिए बैंक लोन प्राप्त करने में कठिनाई हो रही है. बैंकों द्वारा दाखिल-खारिज के बिना लोन देने से इनकार किया जा रहा है, जिससे कई लोगों का अपने घर का सपना अधूरा रह गया है. इसके अलावा, कोर्ट में चल रहे सिविल मामलों के निपटारे में भी परेशानी हो रही है, क्योंकि दाखिल-खारिज की जानकारी के बिना कोर्ट निर्णय लेने में असमर्थ है.

आगे की राह

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद, छपरा नगर निगम क्षेत्र में भूमि रजिस्ट्री से संबंधित अड़चनें दूर होने की उम्मीद है. हालांकि, यह आवश्यक है कि स्थानीय प्रशासन और संबंधित विभाग उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करते हुए प्रक्रियाओं को सरल और पारदर्शी बनाएं, ताकि लोगों को उनकी संपत्ति के मालिकाना हक और उससे जुड़े लाभ प्राप्त हो सकें.

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