इस्लामपुर नगर परिषद की बंदोबस्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता पर उठे सवाल

इस्लामपुर (नालंदा दर्पण)। इस्लामपुर नगर परिषद अंतर्गत चिन्हित वाहन पड़ाव और सैरातों की वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए पूरे बारह महीने की बंदोबस्ती की प्रक्रिया कार्यपालक पदाधिकारी पूजा माला की उपस्थिति में संपन्न हो गई। यह प्रक्रिया बेहद गोपनीय तरीके से की गई। जिससे स्थानीय पत्रकारों को पूर्व में कोई सूचना नहीं दी गई। सूत्रों के अनुसार, नगर परिषद कार्यालय में इस प्रकार की बैठकों या बंदोबस्ती से संबंधित सूचनाएं मीडिया को देना जरूरी नहीं समझा जाता, जो पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े करता है।

सूत्रों के मुताबिक इस बार की बंदोबस्ती मात्र  87 लाख 51 हजार रुपये में निपटा दी गई। जबकि पिछले कुछ वर्षों में इससे कहीं अधिक बोली लग चुकी थी। उदाहरण के लिए वित्तीय वर्ष 2021-22 में वास्तविक डाक के बाद उच्चतम बोलीदाता को यह बंदोबस्ती 1 करोड़ 11 लाख रुपये में दी गई थी। ऐसे में यह समझ से परे है कि लगातार कई वित्तीय वर्षों के बाद भी बंदोबस्ती की राशि कम कैसे हो रही है?

नगरवासियों का कहना है कि नियमों के अनुसार प्रत्येक वर्ष 10 फीसदी की वृद्धि होनी चाहिए। लेकिन इस वर्ष इसका पालन नहीं किया गया। इससे स्पष्ट होता है कि कहीं न कहीं मिलीभगत या किसी खास रणनीति के तहत बोली को कम रखा गया।

सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि इस बार बंदोबस्ती प्रक्रिया की सूचना किसी भी समाचार पत्र में प्रकाशित नहीं की गई। जबकि हर साल यह सूचना अखबारों में जारी की जाती थी। इससे आम नागरिकों को पूरी प्रक्रिया से अनभिज्ञ रखा गया और संभावित बोलीदाताओं को भाग लेने से रोका गया।

इसके अलावा, पहले हर सैरात की अलग-अलग बंदोबस्ती की जाती थी। लेकिन इस बार सभी सैरातों को एक साथ कर दिया गया। इससे मध्यमवर्गीय परिवार और छोटे बोलीदाता बाहर हो गए। क्योंकि वे इतनी बड़ी राशि जमा करने में असमर्थ होते हैं। इससे यह प्रक्रिया धीरे-धीरे आम जनता से दूर होती जा रही है और चंद गिने-चुने लोगों को ही इसका लाभ मिल रहा है।

सूत्रों का यह भी कहना है कि यदि बंदोबस्ती की पूरी प्रक्रिया की सीसीटीवी या वीडियो रिकॉर्डिंग को देखा जाए तो सच्चाई सामने आ सकती है। ऐसे में राजस्व हानि की जांच के लिए उच्च विभागीय अधिकारियों और जिलाधिकारी नालंदा को संज्ञान लेना चाहिए।

जब इस विषय में कार्यपालक पदाधिकारी पूजा माला से संपर्क करने का प्रयास किया गया तो उनसे संपर्क नहीं हो सका। इससे लोगों में संदेह और बढ़ गया है कि कहीं न कहीं प्रक्रिया में गड़बड़ी जरूर है।

नगरवासियों का कहना है कि जब हर साल पारदर्शिता बनाए रखते हुए समाचार पत्रों में विज्ञापन दिया जाता था तो इस बार ऐसा क्यों नहीं किया गया? आखिर क्या कारण था कि नगर परिषद कार्यालय ने यह प्रक्रिया गोपनीय तरीके से पूरी की?

इस पूरे मामले को लेकर स्थानीय लोग अब उच्च अधिकारियों से जांच की मांग कर रहे हैं। ताकि यह पता चल सके कि बंदोबस्ती की राशि में गिरावट क्यों आई और किसके इशारे पर पूरी प्रक्रिया पार्षदों और आम जनता से छिपाकर पूरी की गई।

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