आजकल भाषा सिर्फ बातचीत का जरिया नहीं रह गई है, बल्कि यह ज्ञान और नए अवसरों की चाबी बन चुकी है. इसी सोच के साथ तमिलनाडु के सरकारी स्कूलों में लैंग्वेज लैब्स शुरू की गई हैं, जहां बच्चे टेक्नोलॉजी की मदद से अपनी मातृभाषा और अंग्रेजी दोनों सीख रहे हैं. इससे उनका उच्चारण और भाषा समझने की क्षमता बेहतर हो रही है. अब कर्नाटक भी इस मॉडल को अपनाने की तैयारी कर रहा है.

बिहार के लिए क्यों जरूरी है लैंग्वेज लैब्स?
बिहार के सरकारी स्कूलों में लाखों बच्चे पढ़ते हैं, लेकिन भाषा सीखने में अब भी कई दिक्कतें आती हैं. सही उच्चारण, व्याकरण और बोलने की कला में सुधार लाने के लिए पुराने तरीकों से ज्यादा बेहतर है कि हम टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करें. अगर बिहार में भी लैंग्वेज लैब्स बनाई जाएँ, तो बच्चों को बेहतर शिक्षा मिलेगी और वे आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ सकेंगे.

लैंग्वेज लैब्स कैसे काम करती हैं
इन लैब्स में कंप्यूटर, टैबलेट, ऑडियो-विज़ुअल कंटेंट और इंटरैक्टिव सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया जाता है. इससे बच्चे बोलचाल की भाषा, व्याकरण और उच्चारण को बेहतर ढंग से सीख पाते हैं. यह तरीका उन्हें झिझक छोड़कर आत्मनिर्भर बनने में मदद करता है.

गणित और विज्ञान में भी आ सकता है काम
लैंग्वेज लैब्स की तरह डिजिटल लैब्स का इस्तेमाल गणित और विज्ञान जैसे विषयों में भी किया जा सकता है. इंटरैक्टिव टूल्स की मदद से मुश्किल टॉपिक्स को आसान और मजेदार बनाया जा सकता है, जिससे बच्चों को बेहतर समझ आएगी.
सरकार को क्या करना चाहिए?
बिहार में शिक्षा सुधार के कई कदम उठाए गए हैं, लेकिन टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल की रफ्तार अभी धीमी है. अगर सरकार तमिलनाडु की तरह बिहार के स्कूलों में भी लैंग्वेज लैब्स शुरू करे, तो इससे बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ेगा, उनकी शिक्षा का स्तर ऊँचा होगा, और उनके करियर के मौके भी बेहतर होंगे.

क्या हो सकते हैं ठोस कदम?
• पायलट प्रोजेक्ट: पहले कुछ सरकारी स्कूलों में इसे शुरू किया जाए.
• शिक्षकों का प्रशिक्षण: लैब्स चलाने के लिए टीचर्स को ट्रेनिंग दी जाए.
• सरकारी-निजी साझेदारी: टेक कंपनियों और प्राइवेट सेक्टर के साथ मिलकर इसे तेजी से लागू किया जाए.
• छात्रों की भागीदारी: भाषा सीखने को मजेदार बनाने के लिए एक्टिविटीज करवाई जाएँ.
• नियमित मूल्यांकन: समय-समय पर जाँच हो कि लैब्स कितनी असरदार हैं और उन्हें और बेहतर कैसे किया जा सकता है.
अगर इन चीजों को लागू किया जाए, तो बिहार के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को भी अच्छी शिक्षा मिल सकेगी और वे आत्मनिर्भर बनेंगे.

अंत में, मैं यही कहना चाहूँगी कि आज के डिजिटल जमाने में भाषा कौशल किसी भी बच्चे के करियर और पर्सनल ग्रोथ के लिए बहुत जरूरी है. तमिलनाडु जैसे राज्यों में लैंग्वेज लैब्स की सफलता को देखते हुए बिहार में भी इसे लागू करना चाहिए. अगर सरकार इस पर ध्यान दे और सही नीतियाँ बनाए, तो बिहार के लाखों बच्चों को बेहतर भविष्य मिल सकता है.
pncb