बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। नालंदा जिले में संस्कृत विद्यालय का हाल बेहद दयनीय है। अधिकांश विद्यालयों का संचालन सिर्फ कागजों पर हो रहा है। उसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। न तो भवन की उचित व्यवस्था है और न ही बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध हैं।
बिहारशरीफ प्रखंड के मुरौरा हवेली स्थित महेंद्र संस्कृत प्राथमिक सह मध्य विद्यालय इसकी जीती जागती मिसाल है। यह विद्यालय झाड़ियों से घिरे एक जर्जर भवन में संचालित हो रहा है। इसे देखना किसी खंडहर का भ्रम पैदा करता है। विद्यालय भवन की स्थिति इतनी दयनीय है कि इसकी रही सही छत कभी भी गिर सकती है। अधिकतर कमरों की छत गायब हो चुकी है। जिससे बच्चों के बैठने के लिए मात्र एक ही कमरा बचा है।
शिक्षा विभाग के अनुसार इस विद्यालय में प्रभारी प्रधानाध्यापक समेत कुल पाँच शिक्षक कार्यरत हैं। इन्हें सरकार की ओर से अनुदान भी प्राप्त हो रहा है। जबकि एक पद अब भी रिक्त है। हालांकि स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि विद्यालय में शिक्षक कभी-कभार ही दिखाई देते हैं। वहीं छात्रों की उपस्थिति न के बराबर है।
यह सिर्फ एक विद्यालय की कहानी नहीं है। बल्कि पूरे नालंदा जिले में संस्कृत विद्यालयों की यही स्थिति है। वर्षों से उपेक्षित इन विद्यालयों में बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है। जिससे संस्कृत शिक्षा का अस्तित्व ही खतरे में पड़ता जा रहा है।
बहरहाल, सरकार और शिक्षा विभाग की अनदेखी के कारण संस्कृत विद्यालय महज औपचारिकता बनकर रह गए हैं। क्या प्रशासन इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाएगा या फिर ये विद्यालय सिर्फ कागजों पर ही चलते रहेंगे?
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