विश्व पुस्तक मेला में हुआ छपरा के संदीप कुमार के पुस्तक का विमोचन

Chhapra: लेखन कला की दुनिया के प्रत्येक शख्स का यह स्वर्णिम स्वप्न होता है कि उसकी पुस्तक का विमोचन विश्व पुस्तक मेला में हो जाए। छपरा जिले के मासूम गंज मोहल्ले के निवासी सत्यनारायण प्रसाद व प्रेमा देवी के पुत्र संदीप कुमार का यह सपना भी साकार हुआ जब 8 फरवरी, 2025 को दिल्ली के प्रगति मैदान में उनकी कविता संग्रह ” तुम कहां चली गई” ( प्रकाशक – सर्व भाषा ट्रस्ट )का विमोचन दिग्गज अभिनेता एवं लेखक श्री अखिलेन्द्र मिश्रा, सर्वभाषा ट्रस्ट के संचालक केशव मोहन पांडे, ओम निश्चल, प्रभात पांडे तथा जेपी द्विवेदी जैसे साहित्यकारों के कर कमलों से किया गया।

पुस्तक के विमोचन के साथ हीं स्वयं संदीप ने प्रथम कविता “पूजा के दीप ” का पाठ किया। पाठ करते समय मानो संदीप के दिल का भाव उनके मुखमण्डल पर झलक रहा था। उन्होंने यह स्पस्ट किया यह सम्पूर्ण कविता संग्रह उनके दिल के उदगार हैं और प्रत्येक शब्द ह्रदय की गहराइयों से मानों स्वतः प्रस्फुटित होते गए और एक लम्बे समय के अथक प्रयास,ईश्वर की असीम अनुकम्पा, माता – पिता, गुरुजनों के आशीर्वाद और मित्रों के सहयोग से आज यहाँ तक का सफर तय हो पाया। आगे भी पाठकों के ह्रदय की गहराइयों तक पहुँच सके इसकी कामना भी की।

सुप्रसिद्ध अभिनेता अखिलेंद्र मिश्रा ने इस पुस्तक की संक्षिप्त व्याख्या करते हुए बताया की प्रेम,प्रेम के विरह और विरह के संताप को संदीप ने जिस प्रकार से शब्दों में पिरोया है, मानों हर प्रेमी के जज़्बात को कविताओं में ऊकेर कर रख दिया है। प्रेमी का अपनी प्रेयसी को पुकार ही इस पुस्तक का शीर्षक बन गई। श्री मिश्रा ने बताया कि इस कविता संग्रह की एक-एक कविता को उन्होंने स्वयं पढ़ा है जो अत्यंत ही मार्मिक और दिल को छू लेने वाली हैं.विमोचन के साथ-साथ ही श्री मिश्रा ने “कुछ शेष रहा” शीर्षक की कविता का स्वयं पाठ किया। अपनी शुभकामनाएं देते हुए यह भी कहा कि सामाजिक सरोकार,विरह,प्रेम, रस और भाव से पूर्ण यह पुस्तक पाठकों को अवश्य ही पसंद आएगी। इस पुस्तक की रिकार्ड तोड़ सफलता के लिए संपादक और कवि प्रभात पाण्डेय, जे. पी. द्विवेदी, सर्व भाषा ट्रस्ट के संचालक केशव मोहन पाण्डेयने भी अपनी शुभकामनाओं के साथ – साथ संदीप को ढेर सारा आशीर्वाद भी दिया।

अंततः प्रसिद्ध आलोचक एवं साहित्यकार ओम निश्चल ने अपने अनोखे अंदाज़ में किसी शायर की शायरी ” हम थें उदासियों थी खामोश गुलमोहर था, हम थे उदासियां थी खामोश गुलमोहर था, हमदर्द भी न गाते तो क्या बयान करते से समापन कार्यक्रम संपन्न किया ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *