Bihar Politics Presents ‘लाडला’, बेटा का ट्रेलर रिलीज?

Bihar Politics Presents लाडला, बेटा का ट्रेलर रिलीज। यही है, फिलहाल बिहार पॉलिटिक्स। अचानक, आध्यात्म की दुनिया से राजनीति की छोर में घुसता नौजवान। आते ही रखता है बड़ी डिमांड। नाम है, निशांत कुमार। जी हां, ये वही निशांत हैं जिनके पापा यानि सीएम नीतीश कुमार अभी-अभी पीएम मोदी के लाडला बने हैं। इस लाडले की फिल्म अंग प्रदेश में प्रदर्शित क्या हुई? बेटा का ट्रेलर रिलीज हो गया।

सीएम नीतीश कुमार को ही बनाइए। अधिक सीटें विधान सभा में लाइए

बेटा यानि लाडले के बेटे निशांत कुमार ने उसी पीएम से बड़ी डिमांड रख दी। कहा, मेरे पापा ही सीएम रहेंगे। खुलेआम ऐलान करो। साथ ही, अपने जदयू कार्यकर्ताओं से बड़ी अपील, सीएम नीतीश कुमार को ही बनाइए। अधिक सीटें विधान सभा में लाइए।

खैर, यह तो एक सीन भर है। असल सीन, बीजेपी कोटे से सामने आई है

खैर, यह तो एक सीन भर है। असल सीन, बीजेपी कोटे से सामने आई है। जहां, बिहार फतह की रणनीति बनाते शीर्ष नेतृत्व की आंतरिक बैठक का एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है। इस क्षणिक वीडियो में सुना जा रहा है, कहा जा रहा है। तेजस्वी पर नहीं लालू प्रसाद पर अटैक करना है। यानि, आगामी विधानसभा चुनाव की ध्रुवीकरण का कोण इसबार लालू प्रसाद होने वाले हैं।

राजद का सीधा ऑफर है। आ ना जाइए राजद में।

वजह यह, राजद अब सीधा फ्रंड फुट पर खेलने उतर गई है। कभी लाडले को साथ आने का निमंत्रण देती है। कभी बेटे से कहती है, राजद का सीधा ऑफर है। आ ना जाइए राजद में। लेकिन निशांत अभी पत्ते खोलने से बच रहे हैं। क्यों? साफ कहते हैं, तेज प्रताप यादव की आरजेडी ज्वाइन करने का ऑफर दे रहे हैं, ‘कहते हैं, कहने दीजिए, जनता के दरबार में चलते हैं, वही तय कर देगी।’ ‘मैं अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं से भी आह्वान करता हूं कि वह पिताजी की नीतियों को और पिछले 19 साल में उनहोंने जो काम किया है उसे जनजन तक पहुंचाएं। जनता को सारी बातें मालूम होना चाहिए। तब वह समझ पाएगी कि कौन लायक है।’

अब देखिए ना। सवाल है, क्या निशांत सियासत में डेब्यू करने वाले हैं? 

बिहार मंत्रिमंडल विस्तार: विधानसभा चुनाव से पहले बड़ा सियासी दांव

✔ भाजपा की रणनीति में जातीय, सामाजिक और क्षेत्रीय संतुलन प्राथमिकता
बिहार में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले संभावित मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। भाजपा इस विस्तार के जरिए जातीय, सामाजिक और क्षेत्रीय समीकरणों को साधने की कोशिश करेगी।

क्यों अहम है यह कैबिनेट विस्तार?

चुनावी गणित: बिहार में जातीय समीकरण हमेशा से चुनावी राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। इस विस्तार में ओबीसी, दलित, महादलित और सवर्ण समुदायों को संतुलित करने की कोशिश होगी।
क्षेत्रीय संतुलन: भाजपा राज्य के उत्तर और दक्षिण बिहार के बीच संतुलन बनाने के साथ-साथ सीमांचल, मगध और मिथिलांचल क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है।
गठबंधन समीकरण: जदयू-भाजपा गठबंधन के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए मंत्रिमंडल में गठबंधन धर्म का पालन किया जाएगा।
महिला और युवा नेतृत्व: भाजपा महिलाओं और युवाओं को भी प्रतिनिधित्व देकर अपनी ‘सबका साथ, सबका विकास’ की नीति को आगे बढ़ाएगी।

मंत्रिमंडल विस्तार का संभावित असर

भाजपा की चुनावी तैयारियों को गति मिलेगी।
सामाजिक समीकरण मजबूत होंगे, जिससे वोट बैंक पर सीधा प्रभाव पड़ेगा।
क्षेत्रीय संतुलन साधकर विरोधियों के प्रभाव वाले क्षेत्रों में पकड़ बनाई जाएगी।

बिहार में भाजपा की यह रणनीति चुनावी लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है। अब देखना होगा कि पार्टी किन चेहरों को मंत्रिमंडल में शामिल कर चुनावी बढ़त बनाने में सफल होती है।

मौसी से लेकर मामा तक… राजनीति में वेलकम कर रहे, मगर बेटे के लिए ‘लाडला’ चुप हैं

वैसे, लाडले के बेटे को राजनीति में आते देखना उनके परिवार के लोगों को खूब भा भी रहा है। जंच भी रहा है। मौसी से लेकर मामा तक उन्हें राजनीति में आने का स्वागत कर रहे हैं। साथ ही यह भी कहते नहीं थकते, फैसला तो निशांत को लेना है। खैर, इस मामले में जदयू के वरिष्ठ नेताओं ने चुप्पी तोड़ते बस इतना भर कहा है, जदयू को नीतीश कुमार ने सींचा है। नीतीश जो चाहते हैं, जो चाहेंगे वही होगा। फिलहाल, बिहार के सीएम निशांत के मामले में चुप्पी साधे हैं।

खासकर, तब जब से बिहार में भाजपा-जदयू की सरकार साथ में रन ले रही है

इसकी वजह भी है। लाडले लगातार परिवारवाद पर राजद को घेरते रहे हैं। जोरदार परिवारवाद की खिलाफत की है। खासकर, तब जब से बिहार में भाजपा-जदयू की सरकार साथ में रन ले रही है। मगर, संकेत पुराना-पुराना है। 1970-71 और 1977-79 तक दो बार बिहार के 11वें मुख्यमंत्री के रूप में कार्य करने वाले जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न के मौके पर अचानक रामनाथ ठाकुर का आना। मोदी मंत्रिमंडल 3.0 में मंत्री बन जाना। यह नाम भी लाडले की जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) से ही निकला। नेता रामनाथ ठाकुर जेडीयू के राज्यसभा सांसद हैं। यानि, परिवारवाद का तिलिस्म तो यहीं से टूटता-बिखरता दिखा।

लेकिन यह खुशी एनडीए की पेट को अंदर से मरोड़ रही है

हलचल तो निशांत कुमार के ताजा बयान से है। एक ऐसा बयान, बीजेपी ही नहीं एनडीए के घटक दलों में भी बेचैनी के साथ जवाब देने की चुनौती आ गई है। दरअसल, निशांत कुमार तो खुशी जताई, लेकिन यह खुशी एनडीए की पेट को अंदर से मरोड़ रही है। पीएम मोदी ने सीएम नीतीश कुमार को भागलपुर की रैली में लाडला क्या कहा, निशांत ने सधे अंदाज में बिल्कुल संतुलित राजनीतिज्ञ की भूमिका में आ गए। मुस्कुराए और कहा, ‘गठबंधन है तो बोलेंगे ही।’

नए सिरे से अटकलें तेज हो गई हैं

निशांत यहीं नहीं रूके। युवाओं से आह्वान करते कहा, पिताजी ने विकास किया है तो, उनके लिए वोट करें। पिछली बार लोगों ने उन्हें 43 सीटें दे दी, फिर भी उन्होंने विकास का क्रम रुकने नहीं दिया। इस बार सीट बढ़ाना है। यही बिहार की जरूरत है। ताकि, पिताजी आगे भी कार्य जारी रख सकें। ‘मैं अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं से भी आह्वान करता हूं कि वह पिताजी की नीतियों को और पिछले 19 साल में उनहोंने जो काम किया है उसे जनजन तक पहुंचाएं। जनता को सारी बातें मालूम होना चाहिए। तब वह समझ पाएगी कि कौन लायक है।’निशांत का ताजा बयान आने के बाद नए सिरे से अटकलें तेज हो गई हैं।

दरअसल, बात पुरानी है। कहानी नई है

दरअसल, बात पुरानी है। कहानी नई है। याद कीजिए कुछ महीने पहले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने एक टीवी शो में क्या कहा था? बिहार में एनडीए के सीएम फेस का फैसला बीजेपी और जेडीयू के लोग मिलकर तय करेंगे। इसके बाद पलटवार किया डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा ने। कहा, बिहार में बीजेपी की सरकार और सीएम होगा। बाद में सफाई-पोछा लगा। मगर, दरभंगा से बीजेपी के कद्दावर नेता अमरनाथ गामी ने भी यही सुर अलाप दिया है। ताकि, बिहार में सीएम बीजेपी की बन सके।

आनन-फानन का खेल शुरू हो गया बिहार में

पृष्ठभूमि के बीच आनन-फानन का खेल शुरू हो गया बिहार में। जेपी नड्‌डा आए। हलचल तेज हो गई। आनन-फानन में कैबिनेट विस्तार। दिलीप जायसवाल की अचानक से कैबिनेट से छुट्‌टी। बीजेपी का संगठन विस्तार। जातीय समीकरण का रखरखाव। अति पिछड़ों से लेकर अगड़ी जातियों तक हर वर्ग को साधने की रणनीति। उसी की कोशिश। भाजपा वोट बैंक को मजबूत करने की रणनीति के अंदाज भी हैं, मायने भी।

“बस छोड़िए।”

हालांकि, जब पत्रकारों ने निशांत से यह पूछा, क्या वह राजनीति में आ रहे हैं? निशांत ने संक्षेप में कहा कि “बस छोड़िए।”।

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