Hyderabad | अमेरिकी सरकार द्वारा यूएसएआईडी (USAID) फंडिंग रोकने का असर अब भारत पर भी दिखने लगा है। ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए भारत के पहले तीन हेल्थ क्लीनिक को पिछले महीने बंद कर दिया गया। ये क्लीनिक यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) और सिडेंट्स इमरजेंसी प्लान फॉर एड्स रिलीफ (PEPFAR) के सहयोग से संचालित होते थे।
5000 से अधिक लोगों पर पड़ा असर
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, क्लीनिकों के बंद होने से करीब 5000 लोगों की स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हुई हैं। डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने यूएसएआईडी की 21 मिलियन डॉलर (≈ 175 करोड़ रुपये) की फंडिंग रद्द कर दी। अमेरिकी सरकार का दावा है कि इस फंड का इस्तेमाल भारत में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए किया गया था।
क्लीनिक को चलाने के लिए सालाना 30 लाख रुपये की जरूरत
👉 महाराष्ट्र के कल्याण और पुणे में स्थित ये क्लीनिक ट्रांसजेंडर समुदाय के डॉक्टरों और कंसल्टेंट्स द्वारा संचालित किए जाते थे।
👉 यहां सामान्य स्वास्थ्य परामर्श, HIV टेस्ट और इलाज, मानसिक स्वास्थ्य सहायता, जेंडर अफर्मेशन सेवाएं (Gender Affirmation Services), कानूनी और सामाजिक योजनाओं की जानकारी मुफ्त में दी जाती थी।
👉 एक क्लीनिक को सालाना 30 लाख रुपये की आवश्यकता होती थी, जिसमें करीब 8 लोग काम करते थे।
एचआईवी मरीजों के लिए बड़ा झटका
➡️ क्लीनिक में आने वाले 10% से अधिक मरीज एचआईवी (HIV) से संक्रमित थे।
➡️ अब क्लीनिक फंडिंग के नए स्रोतों की तलाश कर रहे हैं ताकि सेवाएं जारी रखी जा सकें।
यूएसएआईडी में छंटनी, हजारों कर्मचारियों की नौकरी गई
📌 24 फरवरी 2025 को ट्रंप प्रशासन ने यूएसएआईडी के 1,600 से अधिक कर्मचारियों को बर्खास्त करने का ऐलान किया।
📌 अतिरिक्त कर्मचारियों को पेड लीव पर भेज दिया गया।
📌 इस फैसले के कारण यूएसएआईडी को कई कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
अंतरराष्ट्रीय सहायता रोकने के प्रभाव
✔️ ट्रांसजेंडर समुदाय को स्वास्थ्य सेवाओं की बड़ी हानि।
✔️ एचआईवी प्रभावित मरीजों को मुफ्त इलाज में दिक्कतें।
✔️ भारत में सामाजिक कल्याणकारी योजनाओं को झटका।
आगे क्या?
🔹 फंडिंग के नए स्रोतों की तलाश जारी है।
🔹 सरकारी और निजी स्तर पर मदद की अपील की जा रही है।
🔹 अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं इस संकट को हल करने के लिए बातचीत कर रही हैं।