दरभंगा, देशज टाइम्स.कॉम ब्यूरो रिपोर्ट: अलीगढ़ के ताले मज़बूती और वैरायटी के लिए मशहूर हैं। अलीगढ़ में तालों के बनने का इतिहास करीब 130 साल पुराना है। अलीगढ़ के ताले दुनिया के कई देशों में जाने जाते हैं। तो अपना डीएमसीएच भी क्या कम है। अभी-अभी दरभंगा मेडिकल कॉलेज (DMC) का शताब्दी समारोह साल 2025 में मनाया गया। समारोह में ‘स्पर्धा 2025’ नाम से कई प्रतियोगिताएं हुईं। वैसे भी, डीएमसीएच पटना पीएमसीएच के बाद सबसे बड़ा बिहार का अस्पताल है। इसपर गर्व है। लेकिन शर्म के साथ…जहां, झूठे दावे, जमीनी शक्ल में सामने है।
यहां झूठ बोले जाते हैं… प्रमाण है यह Machine
अलीगढ़ के ताले इतने मजबूत हैं, टिकाउ हैं आप इसपर भरोसा कर सकते हैं। लेकिन, डीएमसीएच की व्यवस्था पर भरोसा करना, इलाज कराकर सकुशल घर लौट जाना, बेहद रिस्की है। वजह है, यहां झूठ बोले जाते हैं। इसका प्रमाण है, डीएमसीएच (Darbhanga Medical College & Hospital) का क्षेत्रीय रक्त अधिकोष विभाग। इस विभाग की एफेरेसिस मशीन (Apheresis Machine) चालू करने का दावा झूठा निकला।
SDP की पड़ी जरूरत, तो करना पड़ा यह भागम-भाग
मशीन उपलब्ध होने के बावजूद मरीजों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। हाल ही में डीएमसीएच के एक चिकित्सक को सिंगल डोनर प्लेटलेट्स (SDP) की जरूरत थी, लेकिन मशीन चालू नहीं होने के कारण उन्हें मुजफ्फरपुर रेफर किया गया।
बंद कमरे में लटके ताले ने खोली पोल
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बल्ड बैंक के जिस कमरे में एफेरेसिस मशीन रखी गई है, उस पर ताला लटका हुआ है, जिससे साफ जाहिर होता है कि मशीन का अब तक कोई उपयोग नहीं हुआ है।
तस्वीर दिखाया, लेकिन हकीकत कुछ और ही निकली
पिछले 27 फरवरी को प्रेस रिलीज के जरिए डीएमसीएच प्रशासन ने यह दावा किया था कि एफेरेसिस मशीन चालू कर दी गई है। इसके लिए अधीक्षक और समिति के सदस्यों की तस्वीरें भी जारी की गई थीं। लेकिन हकीकत कुछ और ही निकली।
स्वास्थ्य मंत्री के निर्देश के बाद भी मशीन धूल फांक रही
✔️ कोविड महामारी के दौरान 2021 में एफेरेसिस मशीन खरीदी गई थी
✔️ स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने डीएमसीएच प्रशासन को इसे चालू करने का आदेश दिया था
✔️ लेकिन अब तक मरीजों को इस सुविधा का लाभ नहीं मिल सका
क्या है एफेरेसिस मशीन और क्यों जरूरी है?
एफेरेसिस मशीन रक्त को अलग-अलग घटकों में विभाजित करती है और जरूरत के अनुसार प्लेटलेट्स, प्लाज्मा, सफेद या लाल रक्त कोशिकाओं को अलग कर मरीज को दिया जाता है।
🔹 इसका उपयोग विशेष रूप से डेंगू, ब्लड कैंसर, एनीमिया और अन्य गंभीर बीमारियों के इलाज में किया जाता है।
🔹 डोनर एफेरेसिस प्रक्रिया के जरिए एक ही डोनर से ज्यादा मात्रा में प्लेटलेट्स प्राप्त किए जा सकते हैं, जो कई गंभीर मरीजों के लिए जीवनरक्षक साबित हो सकता है।
डीएमसीएच प्रशासन का क्या कहना है?
क्षेत्रीय रक्त अधिकोष विभाग के एचओडी डॉ. संजीव कुमार ठाकुर का कहना है कि मशीन पूरी तरह तैयार है, लेकिन अभी तक जरूरतमंद मरीज नहीं पहुंचे हैं, इसलिए इसका उपयोग नहीं किया गया।
प्रशासन की लापरवाही या तकनीकी अड़चन?
👉 अगर मशीन पूरी तरह कार्यरत है, तो डीएमसीएच के चिकित्सक को मुजफ्फरपुर क्यों रेफर किया गया?
👉 क्या डीएमसीएच प्रशासन ने मीडिया को गुमराह करने के लिए गलत जानकारी दी?
👉 क्या मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देने की बजाय सिर्फ कागजी घोषणाएं की जा रही हैं?
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