साम्राज्य खड़ा करने के चक्कर में काली करतूत करने लगे हैं NGO वाले, बेटा-बेटा कहकर नहीं देते हैं पैसा

Barbigha:-जिले में एक NGO बड़े शान से चल रहा है. अच्छा काम भी हो रहा है हाल के दिनों जिले में एक बात बहुत अच्छी लगी है कि दुकानों पर बाल मजदूरी करते बहुत कम बच्चें पाए जाते हैं. इसका श्रेय कैलाश सत्यार्थी फाउंडेशन के साथ मिलकर काम करने वाले जिले के NGO को जाता है. लेकिन बड़ा सवाल तब खड़ा होता है जब ये अपने कर्मचारियों का ही हकमारी करते हैं.

अपने जिले के ही विख्यात NGO में काम करने वाले कर्मचारी काफी परेशान हैं. वजह जानकर आप चौंक जाएंगे. हर व्यक्ति कहीं भी नौकरी तब करता है जब उसे पैसे की जरूरत होती है. प्रत्येक सुबह इंसान जब अपने घर से ऑफिस के लिए निकलता है तो उस घर में मां, बाप, पत्नी, बच्चे सभी के चेहरे पर एक आस होती है कि बेटा कमाने जा रहा है कुछ पैसा घर चलाने के लिए जरूर कमाकर लाएगा लेकिन इस NGO ने कमाल कर रखा है. दिन बीतता है, सप्ताह बीतता है

महीना बीत जाता है फिर अगला महीना भी बीत जाता है न जाने कितना महीना बीत जाता है और बार बार पैसा मांगने पर साफ कह दिया जाता है कैलाश सत्यार्थी ने पैसा नहीं भेजा है.पैसा नहीं देने के बाद एक और खेल शुरू होता है. वो खेल कोई और नहीं बल्कि NGO का हेड ही खेलना शुरू कर देता है. पहली दलील अपने कर्मचारियों को ये देता है कि हम सब एक परिवार हैं. कुछ दिनों तक ये खेल चलता है.

जैसे ही एक महीना बीत जाता है फिर NGO के मास्टर माइंड गुरू जी दूसरा दांव चलते हैं कि अरे यार तुमको हम बेटा मानते हैं और इसी तरह इमोशनली अपने कर्मचारियों का शोषण करने का सिलसिला चलते रहता है.सवाल यहां पर ये खड़ा होता है कि यदि आपकों कैलाश सत्यार्थी पैसा नहीं भेज रहा है तो फिर आप संस्थान चला ही क्यों रहे हैं. कैलाश सत्यार्थी के नाम पर इतना बड़ा चूना क्यों लगा रहे है. इस मामले में हद तो तब हो गई जब एक लड़की थाना पहुंच गई थी और थाने में 3 घंटे के भीतर NGO के हेड को पैसा देना पड़ा था.

लेकिन क्या नौकरी पेशा आदमी हर बार थाना जा सकता है. एक तरफ जब आप समाज का भला कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ अपने ही कर्मचारियों की हकमारी कर रहे हैं. यदि आप अपने कर्मचारियों को बेटा कहते हैं तो धरती पर कौन ऐसा पिता है जो पर्व त्योहार में खुद खादी का कुर्ता पहनकर कार में परफ्यूम लगाकर भ्रमण करता हो और उसका बेटा पैसे के लिए दाने दाने का मोहताज बना फिरता है. सीधी सी बात है अपना साम्राज्य खड़ा करने के चक्कर में साम, दाम, दंड, भेद का सहारा लेकर अपनी अकूत संपत्ति में इजाफा कर रहे हैं और दूसरी तरफ आपके यहां का कर्मचारी माथा पीट रहा है.

क्योंकि जिले के NGO के कर्मचारियों से बात हुई तो उन्होंने बताया कि सर हद हो गया है हमलोगों को 4 महीना से सैलरी नहीं मिला है. सामने होली जैसा पर्व है और हमारे साहब वैकेंसी भी निकाल रहे हैं और होली मिलन समारोह में ढोलक की थाप पर गुनगुना भी रहे हैं.

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