बुरा ना मानो होली है: शहरी नेता शहरी सोच, सिर्फ शहर में ही करते हैं होली मिलन समारोह..चुनावी गपशप

Desk: होली बस कुछ ही दिनों के बाद है. संयोग देखिए बिहार में विधानसभा भी कुछ ही दिन बाद है. ऐसे में बिहार के सभी नेताओं में एक बात कॉमन है. अपने वोटरों को लुभाने में लगे हैं हर दिन कोई ना कोई पैतरा चल ही रहे हैं. दिवाली आई तो जनता के बीच पैकेट बांट दिया. मकर संक्रांति का पर्व आया तो दही चूड़ा का भोज कर दिया. होली आई तो होली मिलन समारोह कर दिया. एजेंडा क्लीयर है जनता के बीच अपनी क्रेज कम ना होने पाए.

हालांकि होली मिलन समारोह बिहार में कई नेता बड़े धूमधाम से मनाते आए हैं लेकिन बरबीघा में कुछ ज्यादा ही क्रेज आजकल देखने को मिल रहा है.
दरअसल बरबीघा में होली मिलन समारोह तो बहाना है असली बात तो विधानसभा का टिकट पाना है. बात किसी एक साहब की नहीं पूरे बरबीघा को लेकर है. अब देखिए ना बरबीघा सीट को लेकर कितनी मारामारी है. हर कोई यहीं से टिकट पाना चाहता है. वजह क्या है पता नहीं लेकिन बरबीघा विधानसभा सीट का इतिहास देखकर लगता है ये उड़न खटोले नेताजी के लिए सेफ सीट है.

कई बार यहां बाहर से साहब आते हैं जनता को भरमाते हैं टिकट पाते हैं फिर जीतकर पटना चले जाते हैं और वहीं अपना भौकाल टाइट करते हैं. हालांकि इस बात का जिक्र अक्सर बरबीघा के एक दिग्गज नेता करते रहे हैं कि बरबीघा विधानसभा के लोगों को तय करना चाहिए कि यहीं का बेटा यहां का नेता बने तो बेहतर है. वो नाम लेते हुए अक्सर कई इंटरव्यू में कहते हैं कि जनता सुदर्शन कुमार को फिर से चुन ले या फिर त्रिशुल सिंह, शिवकुमार बाबू, मधुकर कुमार, भल्ला दा, पूनम शर्मा, शंकू कुमार, जैसे कई नाम हैं किसी को जनता माला पहना दे जो कि बरबीघा के लिए बेहतर साबित होगा.

अब स्थिती समझिए 2005 में भी एक डॉक्टर साहब आए थे नाम है रामसुंदर राम कन्नोजिया. बड़ा शोर था अरे डॉक्टर साहब ऐसे हैं, वैसे है. अच्छे हैं बहुत अच्छे है. फ्री में यहां देख लेंगे वहां देख लेंगे. लेकिन हुआ ठीक उल्टा जीते तो साहेब के तेवर बदल गए. दुबारा दर्शन दुर्लभ है. नई पीढ़ी तो पहचानती भी नहीं है. ऐसे में दो राजकुमार का जिक्र फिर से होने लगा है. एक बड़े नेता के रिश्तेदार हैं वहीं दूजा पटना के नामी गिरामी डॉक्टर के बेटे हैं. क्रेज काफी है. सूरत और सीरत ऐसा कि मानों आसमान से देवता तुल्य देव ने साक्षात अवतार लिया है लेकिन बरबीघा की जनता थोड़े से पेशोपेश में है कि कहीं कनौजिया वाली गलती ना हो जाए.

कहने को तो अक्सर कहा जाता है कि हिंदुस्तान का दिल गांव में बसता है. कहा ये भी जाता है कि गांव की होली का अलग आनंद है. लेकिन नेताजी ने बड़ी गलती कर दी. होली मिलन समारोह किसी गांव में ना करवाकर शहर में करवा दिया. सोच वहीं है शहर में बाटो मक्खन गांव वालो को भेज तो खाली पतीला की आप इसमे दूध रखिएगा. वैसे ग्रामीण इलाकों में चर्चा है कि “काहे जी हमरा अर के होली मिलन के लायक नैय हिए की जी. हमरो अर के एक आध गमछी देतो हल त गर्मी में पसीना पोछतिए हल”.

एक जगह तो एक युवा ने यह भी कहा कि काहे पत्रकार साहेब देखो हो-हमरा देथिन सुईया और शहरवा में बाटो हखिन मलइयां”. चुनावी साल है नेताजी के पैतरों को गांव की जनता अब बहुत खूब समझने लगी है. जनता थोड़ी से पेशोपेश में जरूर है कि किसे चुने लेकिन इतना तो तय है कि इस बार बरबीघा की जनता बड़ी गलती नहीं करेगी.

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