श्रीस्कन्द महापुराण में मार्गशीर्ष मास-महात्म्य -: पं० भरत उपाध्याय

श्रीकृष्ण के बालस्वरूप का ध्यान, दामोदर मन्त्र के अधिकारी शिष्य और गुरु का लक्षण और श्रीमद्भागवत की महिमा…(भाग 3) विद्वान् पुरुषको चाहिये कि वह वैष्णवोंके व्रतोंको स्वीकार करे। जो मुझे प्रिय लगनेवाले परम उत्तम श्रीमद्भागवतपुराणका पाठ करता है, उसे प्रत्येक अक्षरपर कपिला गौके दानका फल मिलता है। जो प्रतिदिन श्रीमद्भागवतके आधे या चौथाई श्लोकका पाठ करता अथवा सुनता है, उसे सहस्त्र गोदानका फल मिलता है। जो प्रतिदिन पवित्रचित्त हो भागवतके श्लोकका पाठ करता है, उसे अठारह पुराणोंके पाठ करनेका फल मिलता है। जहाँ नित्य मेरी कथा होती है, वहाँ वैष्णवगण स्थित होते हैं। जो सदा मेरी पूजा करते हैं, वे मनुष्य कलियुगके बाहर हैं। जो कलियुगमें अपने घरपर प्रतिदिन भागवतशास्त्रकी पूजा करते हैं, उनके ऊपर मैं प्रसन्न होता हूँ। बेटा! जितने दिनोंतक घरमें भागवतशास्त्र रहता है, उतने दिनोंतक पितर दूध, घी और मधुके साथ जल पीते हैं। जो भक्तिपूर्वक वैष्णव विद्वान्‌को भागवतशास्त्र देते हैं, वे मेरे लोकमें निवास करते हैं। जो अपने घरपर सदा भागवतशास्त्रकी पूजा करते हैं, उनके उस पूजनसे सब देवता प्रलयकालतकके लिये तृप्त हो जाते हैं। सदा मेरी प्रसन्नताके लिये सबको वैष्णव-शास्त्रोंका संग्रह करना चाहिये। कलियुगमें जहाँ-जहाँ परम पवित्र भागवतशास्त्र रहता है, वहाँ-वहाँ मैं सम्पूर्ण देवताओंके साथ सदैव निवास करता हूँ। वहीं सम्पूर्ण तीर्थ, नदी, नद, सरोवर, यज्ञ, सातों पुरी तथा सम्पूर्ण पवित्र पर्वत निवास करते हैं। धर्मबुद्धि पुरुषको पापके नाश और मोक्षकी प्राप्तिके लिये सदा भागवतशास्त्र श्रवण करना चाहिये। श्रीमद्भागवत परम पवित्र, आयु, आरोग्य तथा पुष्टिको देनेवाला है। इसके पढ़ने और सुननेसे मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो जाता है। जो परम उत्तम श्रीमद्भागवतको न तो सुनते हैं और न सुनकर प्रसन्न ही होते हैं, उनपर सदा यमराजका प्रभुत्व रहता है, यह सर्वथा सत्य बात है। जिसके घरमें भागवतका एक या आधा श्लोक भी लिखकर रखा हुआ है, उसके यहाँ मैं स्वयं निवास करता हूँ। जो मेरी कथा बाँचता है, मेरी कथा सुननेमें संलग्न रहता है और मेरी कथा सुनकर जिसका मन प्रसन्न होता है, उस मनुष्यको मैं कभी नहीं छोड़ता। जो श्रीमद्भागवतका दर्शन करके उठकर खड़ा हो जाता और बारंबार प्रणामके द्वारा उसका सम्मान करता है, उसको देखकर मुझे अनुपम प्रसन्नता होती है। जो दूरसे भागवतशास्त्रको देखकर उसके सामने जाता है, उसे पग-पगपर अश्वमेध यज्ञका फल प्राप्त होता है, इसमें सन्देह नहीं। जो श्रीमद्भागवतको सुनते हैं, मैं उनके वशमें होता हूँ। जो वस्त्र, आभूषण, पुष्प, धूप, दीप और नाना प्रकारके उपहारोंके साथ भक्तिपूर्वक मेरी प्रसन्नताके लिये श्रीमद्भागवत सुनते हैं, वे मुझे वशमें कर लेते हैं। ठीक उसी तरह जैसे साध्वी स्त्री अपने श्रेष्ठ पति को वश में कर लेती है।
क्रमशः…

शेष अगले अंक में जारी

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