रमजान शुरु: जानें क्या है इबादत, रोजा और सदका का पवित्र महीना

इस्लामपुर (नालंदा दर्पण)। मुस्लिम समाज के लिए सबसे पवित्र महीना रमजान 2 मार्च से शुरू हो रहा है। यह माह इस्लामी कैलेंडर के नौवें महीने के रूप में जाना जाता है और इसका प्रारंभ चांद के दिखाई देने पर निर्भर करता है। रमजान के दौरान मुसलमान सूर्योदय के बाद और सूर्यास्त से पहले भोजन या पानी ग्रहण नहीं करते। रोजे के दौरान वे सूर्योदय से पहले सेहरी खाते हैं और सूर्यास्त के बाद रोजा इफ्तार करते हैं।

इस पूरे महीने के दौरान मुसलमान उपवास के साथ-साथ अपने विचारों और कर्मों में शुद्धता बनाए रखते हैं। मोतव्ली हसन इमाम के अनुसार रमजान का महीना किसी भी गलत कार्य से बचने और नैतिकता बनाए रखने का होता है। अपशब्द, झूठ बोलना, लड़ाई-झगड़ा और धूम्रपान या शराब का सेवन इस दौरान वर्जित माना जाता है। रमजान का पाक महीना केवल उपवास का ही नहीं, बल्कि पूरी तरह से इबादत, सदाचार और खुदा की इबादत का होता है।

रमजान के अंत में, 30 रोजे पूरे होने के बाद ईद-उल-फितर का त्योहार मनाया जाता है। उसे ‘मीठी ईद’ भी कहा जाता है। इस दिन लोग घरों में सेवईं बनाकर खुशियां मनाते हैं और एक-दूसरे के गले मिलकर गिले-शिकवे दूर करते हैं। यह पर्व समाज में भाईचारे और प्रेम का प्रतीक होता है। इस बार ईद-उल-फितर 30 या 31 मार्च को मनाई जाएगी।

रोजा हर बालिग मुस्लिम पर फर्ज है। लेकिन बीमार, गर्भवती महिलाएं, यात्रा कर रहे लोग और मासिक धर्म वाली महिलाओं को रोजा से छूट दी गई है। हालांकि पीरियड्स के दौरान छूटे रोजों को बाद में पूरा करना अनिवार्य होता है। बीमार व्यक्ति रोजा रख सकते हैं। लेकिन दवा खाने की मनाही होती है। ब्लड टेस्ट या इंजेक्शन की अनुमति रहती है। लेकिन खाना या पीना मना होता है।

इस्लाम में माना जाता है कि रोजा रखने की परंपरा दूसरी हिजरी में शुरू हुई थी। जब पैगंबर मुहम्मद साहब मक्के से हिजरत कर मदीना पहुंचे तो उसके एक साल बाद मुसलमानों को रोजा रखने का आदेश दिया गया। रमजान में शब-ए-कद्र की रात बेहद महत्वपूर्ण होती है, जब मुस्लिम समाज रात भर इबादत करते हैं और अपने रिश्तेदारों की कब्रों पर जाकर फातिहा पढ़ते हैं।

रमजान में सदका यानी दान देना अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। यह केवल धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि मानवता और समाज सेवा का संदेश भी है। जकात का उद्देश्य समाज में समानता लाना और गरीबों की सहायता करना है। इसे आर्थिक रूप से सक्षम लोगों के लिए अनिवार्य माना जाता है। ताकि उनकी अर्जित संपत्ति का एक हिस्सा गरीबों, विधवाओं, अनाथों और असहायों की सहायता में लगाया जा सके। रमजान में जकात देने से समाज में खुशहाली और अल्लाह की मेहर बरसती है।

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