बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा में विश्वविख्यात नालंदा संग्रहालय के निर्माण की राह अब भी कठिन बनी हुई है। बीते 23 वर्षों में कई बार मांग उठी। प्रस्ताव भी भेजे गए। लेकिन प्रशासन की उदासीनता के कारण अब तक संग्रहालय के लिए जमीन उपलब्ध नहीं कराई गई।
अत्यंत दुर्भाग्य की बात है कि नालंदा अपनी प्राचीन बौद्ध शिक्षा प्रणाली और ऐतिहासिक धरोहरों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। वहां का जिला संग्रहालय मात्र एक किराये के भवन में संचालित हो रहा है। इस संग्रहालय में आठवीं से दसवीं सदी की बहुमूल्य मूर्तियां और पुरावशेष मौजूद हैं। जिनमें से अधिकांश पाल वंशकालीन माने जाते हैं। लेकिन बुनियादी सुविधाओं के अभाव में इन ऐतिहासिक धरोहरों को समुचित संरक्षण नहीं मिल पा रहा है।
जबकि संग्रहालय के विकास और नए भवन के निर्माण के लिए राज्य सरकार 100 करोड़ रुपये तक खर्च करने के लिए तैयार है। बावजूद इसके प्रशासन की निष्क्रियता इस परियोजना को आगे नहीं बढ़ने दे रही। जिला प्रशासन को तीन एकड़ जमीन उपलब्ध कराने के लिए कई पत्राचार किए गए। लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
गौरतलब है कि हाल ही में लखीसराय जिले में 28 करोड़ रुपये की लागत से एक भव्य संग्रहालय का निर्माण किया गया। जिसका उद्घाटन स्वयं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी प्रगति यात्रा के दौरान किया। वहीं नालंदा जो ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है, अब भी अपने संग्रहालय भवन के लिए तरस रहा है।
जबकि पिछले छह वर्षों से ‘जल-जीवन-हरियाली’ योजना के तहत जिले में पोखर, तालाब और नदियों की खुदाई के दौरान कई प्राचीन मूर्तियां और अवशेष मिल रहे हैं। लेकिन संग्रहालय के अभाव में स्थानीय लोग इन्हें चौक-चौराहों पर स्थापित कर रहे हैं। जिससे इन धरोहरों का संरक्षण सही ढंग से नहीं हो पा रहा।
इतना ही नहीं संग्रहालय संचालन के लिए स्थायी अध्यक्ष की भी नियुक्ति नहीं हो पाई है। वर्तमान में बिहार संग्रहालय के अध्यक्ष नालंदा समेत नौ जिलों के संग्रहालयों की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। प्रशासनिक अनदेखी के कारण संग्रहालय का विकास अवरुद्ध है। जिससे इस ऐतिहासिक धरोहर के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है।
अगर प्रशासन इस दिशा में तत्परता दिखाए तो नालंदा संग्रहालय एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन सकता है। जोकि न केवल ऐतिहासिक विरासत को संरक्षित करेगा, बल्कि जिले के आर्थिक और सांस्कृतिक विकास में भी योगदान देगा। अब देखना यह है कि कब तक यह ऐतिहासिक धरोहर एक कमरे में कैद रहती है या प्रशासन इसके लिए ठोस कदम उठाता है।
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