बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। पटना प्रक्षेत्र के डीआईजी द्वारा हाल ही में बढ़ते अपराध को देखते हुए वाहन चेकिंग अभियान तेज करने का निर्देश दिया गया था। आदेश के मुताबिक दोपहिया और चारपहिया वाहनों की विशेष जांच की जानी थी और संदिग्ध पाए जाने पर वाहन को जब्त कर मामला दर्ज करने की बात कही गई थी। लेकिन यह आदेश सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह गया है।
शहर की सड़कों पर धड़ल्ले से प्रेस और पुलिस लिखी गाड़ियां दौड़ रही हैं। इनका इस्तेमाल अपराधी और संदिग्ध लोग धौंस जमाने के लिए भी कर रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि पुलिस ऐसे वाहनों को न तो रोक रही है और न ही जांच कर रही है।
कई लोग बाजार से प्रेस का स्टीकर खरीदकर अपनी गाड़ियों पर चिपका रहे हैं और शहर में बेरोकटोक घूम रहे हैं। इन वाहनों के मालिकों के पास न तो किसी मीडिया हाउस का अधिकृत आईडी कार्ड होता है और न ही पीआरडी में कोई वैध दस्तावेज जमा होता है।
स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि अब चाय बेचने वाले से लेकर मछली विक्रेता और दिहाड़ी मजदूर तक अपनी गाड़ियों पर प्रेस और पुलिस लिखवाकर घूम रहे हैं। यह फर्जी पहचान न केवल आम जनता को भ्रमित कर रही है। बल्कि असल पत्रकारों की छवि भी खराब कर रही है।
क्या कहते हैं स्थानीय नागरिक? स्थानीय लोगों का कहना है कि इस तरह की गाड़ियां अक्सर रात के समय संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त पाई जाती हैं। शहरवासी डर और असमंजस में हैं कि असली पुलिस और प्रेस कौन है और कौन फर्जी। कई बार शिकायतों के बावजूद पुलिस इन गाड़ियों के खिलाफ कोई सख्त कदम नहीं उठा रही है।
प्रशासन की उदासीनता पर सवालः नालंदा जिले में बढ़ते अपराध के बीच प्रशासन की लापरवाही सवाल खड़े कर रही है। जब तक पुलिस इन फर्जी वाहनों पर सख्त कार्रवाई नहीं करेगी। तब तक अपराधी इसी तरह से कानून से बचते रहेंगे।
क्या होनी चाहिए कार्रवाई? प्रशासन को चाहिए कि वह इस मामले की उच्चस्तरीय जांच कराए और फर्जी प्रेस लिखी गाड़ियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित करे। इसके अलावा प्रेस और पुलिस लिखे वाहनों की नियमित जांच की जाए और बिना वैध प्रमाण पत्र के घूम रहे वाहनों को तुरंत जब्त किया जाए। इससे पत्रकारिता की साख बनी रहेगी और अपराधियों पर लगाम लगाई जा सकेगी।
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