बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। गरीब और असहाय बंदियों के लिए एक उम्मीद की किरण लेकर पटना उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति की पांच सदस्यीय पैनल अधिवक्ताओं की टीम ने बिहारशरीफ और हिलसा अनुमंडलीय जेलों का दौरा किया। यह निरीक्षण सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार आयोजित किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य जेल में बंद कैदियों को निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करना और उनकी कानूनी समस्याओं का समाधान सुनिश्चित करना है।
पटना उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति की इस पहल का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि आर्थिक तंगी या जानकारी के अभाव में कोई भी बंदी अपने कानूनी अधिकारों से वंचित न रहे। निरीक्षण के दौरान अधिवक्ताओं की टीम ने जेल में बंद सजायाफ्ता और विचाराधीन कैदियों से व्यक्तिगत रूप से मुलाकात की। उन्होंने कैदियों के मुकदमों की स्थिति, उनकी कानूनी प्रक्रिया और अन्य समस्याओं की विस्तृत जानकारी ली।
टीम ने कैदियों को आश्वस्त किया कि उनकी कानूनी लड़ाई में हर संभव सहायता प्रदान की जाएगी, चाहे वह निचली अदालत हो, उच्च न्यायालय हो या सर्वोच्च न्यायालय। इसके अतिरिक्त जेल प्रशासन को भी बंदियों के अधिकारों और कानूनी सुविधाओं को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश दिए गए।
निरीक्षण के दौरान टीम ने 20 साल की सजा काट रहे कैदी धर्मवीर मांझी से बातचीत की। धर्मवीर का अपील पटना उच्च न्यायालय से खारिज हो चुका है। लेकिन आर्थिक तंगी के कारण वह सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर करने में असमर्थ था।
पैनल अधिवक्ताओं ने उसकी स्थिति को गंभीरता से लिया और आश्वासन दिया कि जल्द ही उसके सभी जरूरी दस्तावेज एकत्र किए जाएंगे और उसकी ओर से सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की जाएगी।
धर्मवीर जैसे कई अन्य कैदी, जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं, इस पहल से लाभान्वित होंगे। पैनल ने स्पष्ट किया कि कोई भी गरीब या असहाय बंदी कानूनी सहायता से वंचित नहीं रहेगा।
निरीक्षण दल में पैनल अधिवक्ता प्रोन्नति सिंह, सोनी कुमारी, शिल्पी केसरी, दीपांजलि गुप्ता और अंकित कटियार शामिल थे। उनके साथ बिहारशरीफ जेल अधीक्षक अभिषेक कुमार पांडेय, हिलसा जेल अधीक्षक अशोक कुमार सिंह तथा जिला विधिक सेवा प्राधिकार के कर्मी मुकुंद माधव और बालमुकुंद कुमार भी मौजूद रहे।
जेल अधीक्षकों ने इस पहल का स्वागत किया और आश्वासन दिया कि वे बंदियों को कानूनी सहायता प्रदान करने में हर संभव सहयोग करेंगे। जिला विधिक सेवा प्राधिकार के कर्मियों ने भी कैदियों के दस्तावेज और अन्य आवश्यक जानकारी एकत्र करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
पैनल अधिवक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि निःशुल्क कानूनी सहायता प्रत्येक बंदी का अधिकार है। चाहे वह विचाराधीन कैदी हो या सजायाफ्ता, सभी को कानूनी प्रक्रिया में उचित प्रतिनिधित्व का हक है। इस निरीक्षण के दौरान कई ऐसे कैदियों की पहचान की गई, जिन्हें या तो कानूनी प्रक्रिया की जानकारी नहीं थी या उनके पास वकील नियुक्त करने के लिए संसाधन नहीं थे।
टीम ने जेल प्रशासन से अपील की कि वे बंदियों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करें और विधिक सेवा प्राधिकार के साथ समन्वय बनाए रखें, ताकि कोई भी कैदी कानूनी सहायता से वंचित न रहे।
पटना उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति ने इस तरह के निरीक्षण को नियमित रूप से आयोजित करने की योजना बनाई है। इसके अतिरिक्त, जेलों में विधिक जागरूकता शिविर आयोजित किए जाएंगे। ताकि कैदी अपने अधिकारों और कानूनी प्रक्रियाओं के बारे में बेहतर जानकारी प्राप्त कर सकें। समिति का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि बिहार की प्रत्येक जेल में बंद हर जरूरतमंद बंदी को निःशुल्क और गुणवत्तापूर्ण कानूनी सहायता मिले।
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