बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। शिक्षा का अधिकार (RTE) के तहत निजी स्कूलों में कमजोर और अलाभकारी परिवारों के बच्चों को मुफ्त नामांकन देने की योजना में बाधाएँ उत्पन्न हो रही हैं। आरटीई के नियमों के अनुसार निजी स्कूलों को अपनी 25 फीसदी सीटें इन छात्रों के लिए आरक्षित करनी होती हैं। लेकिन इस बार आवेदन प्रक्रिया में देरी से कई बच्चों का भविष्य अधर में लटक गया है।
बताया जाता है कि ज्ञानदीप पोर्टल पर अब भी प्रखंड स्तर पर 967 आवेदन पेंडिंग हैं। जबकि प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी (BEO) ने केवल 341 आवेदन स्वीकृत किए हैं और 8 को अस्वीकृत कर दिया है। ऐसे में यदि शेष आवेदनों की स्वीकृति नहीं हुई तो कई बच्चे नामांकन से वंचित रह सकते हैं।
रेंडमाइजेशन की प्रक्रिया के बाद निजी स्कूलों में सीट आवंटित की जाएगी। जिसके बाद चयनित छात्रों का सत्यापन एवं स्कूल में नामांकन सुनिश्चित किया जाएगा। यह पूरी प्रक्रिया ज्ञानदीप पोर्टल के माध्यम से होगी। जिससे नामांकित बच्चों की निगरानी भी की जाएगी।
आरटीई के तहत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग, अत्यंत पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक समुदाय के उन अभिभावकों के बच्चों को लाभ मिलना चाहिए, जिनकी वार्षिक आय ₹1 लाख से कम है। इसी तरह अन्य कमजोर वर्गों के बच्चों के माता-पिता की वार्षिक आय ₹2 लाख से कम होने पर वे भी पात्र होते हैं।
हालांकि, इस वर्ष निजी स्कूलों ने मुफ्त शिक्षा देने में रुचि नहीं दिखाई। जिले में 762 पंजीकृत निजी स्कूलों में से 289 स्कूलों ने बच्चों की आवश्यक सीटों का विवरण अपलोड ही नहीं किया। जबकि केवल 473 स्कूलों ने अपनी इंटेक कैपेसिटी अपडेट की है।
इस समस्या के समाधान के लिए विभाग ने ज्ञानदीप पोर्टल में वेरिफिकेशन प्रक्रिया में बदलाव किया। लेकिन सुधार की कोई ठोस उम्मीद अब तक नजर नहीं आ रही है। पहले निजी स्कूल खुद ऑनलाइन आवेदन को स्वीकृत कर जांच के बाद आगे बढ़ाते थे। लेकिन अब इस प्रक्रिया में बदलाव के बावजूद स्थिति जस की तस बनी हुई है।
शिक्षा विभाग को जल्द से जल्द लंबित आवेदनों की स्वीकृति सुनिश्चित करनी होगी ताकि कोई भी पात्र बच्चा शिक्षा से वंचित न रह जाए। साथ ही निजी स्कूलों पर भी सख्ती बरतनी होगी ताकि वे आरटीई के तहत अपने दायित्व को निभाएं और मुफ्त शिक्षा की इस योजना को प्रभावी रूप से लागू किया जा सके।
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