फारबिसगंज/अररिया, 6 मार्च (हि.स.)।अररिया जिला के कुर्साकाटा प्रखंड के निवासी विद्यानंद ठाकुर और किरण देवी की बेटी प्रज्ञा ठाकुर 18 मीटर लंबा बिहार का मानचित्र बनाकर इतिहास रचना चाहती हैं.
प्रज्ञा ठाकुर द्वारा बनाए जा रहे इस मानचित्र में बिहार के 38 जिले के सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाया जा रहा है. बताया जा रहा है कि प्रज्ञा कुमारी का बचपन से ही रंगों और चित्रों के प्रति गहरा लगाव था। जब अन्य बच्चे खेलकूद में व्यस्त रहते, तब प्रजा अपनी कल्पनाओं को कागज़ पर उकेरने में मग्न रहती। स्कूल और कॉलेज में आयोजित पेंटिंग प्रतियोगिताओं में वह हमेशा प्रथम स्थान प्राप्त करती रही, जिससे उसकी कला के प्रति रुचि और भी गहरी हो गई।
प्रज्ञा ने मन में ठाना कि वह अपनी चित्रकला के माध्यम से न केवल अपने गांव बल्कि पूरे राज्य का नाम रौशन करेगी। इसी सोच के साथ उसने कुछ अद्वितीय करने का निर्णय लिया। उसने भगवान शिव के दिव्य स्वरूप को 2100 स्क्वायर फीट के विशाल कैनवास पर उकेरने का निश्वय किया। यह कोई साधारण कार्य नहीं था, क्योंकि उसके गांव में संसाधनों की कमी थी और आर्थिक कठिनाइयां भी सामने थी।
अपनी इस महत्त्वाकांक्षी योजना को साकार करने के लिए प्रज्ञा ने ट्यूशन पढ़ाकर आवश्यक सामग्री जुटाई और दिन-रात कड़ी मेहनत करने लगी। छह महीने की अथक परिश्रम के बाद, उसने वह असाधारण पेंटिंग तैयार की, जिसे देखकर हर कोई अचंभित रह गया।
यह पेंटिंग न केवल आकार में विशाल थी, बल्कि इसकी कलात्मकता भी अद्वितीय थी। यह एक ऐसा कीर्तिमान था, जिसे पहले कभी किसी ने स्थापित नहीं किया था।प्रजा की यह अनूठी कृति सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया और डिजिटल मीडिया में तेजी से वायरल हो गई। हर ओर उसकी सराहना होने लगी और लोग उसकी प्रतिभा को सलाम करने लगे। उसकी इस उपलब्धि के लिए कई गैर-सरकारी संगठनों (NGO) और शैक्षणिक संस्थानों ने उसे सम्मानित किया। विभिन्न मंचों पर उसे आमंत्रित कर उसकी कला और समर्पण की सराहना की गई।
अब प्रज्ञा बिहार के कला, इतिहास और संस्कृति से जुड़ी 18 मीटर लंबी बिहार के मानचित्र की पेंटिंग पर कार्य कर रही है, जो राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को उजागर करेगी।
इसके अलावा, वह आर्ट एंड क्राफ्ट में भी रुचि रखती है और अपने हस्तनिर्मित कलाकृतियों को विक्रय कर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने का प्रयास कर रही है। उसकी कला से प्रेरित होकर गांव के कई बच्चे भी उससे प्रशिक्षण ले रहे हैं, ताकि वे भी इस क्षेत्र में आगे बढ़ सकें और आत्मनिर्भर बन सकें। प्रज्ञा की यह यात्रा संघर्ष और समर्पण की एक मिमाल है, जो न केवल उसे बल्कि उसके गांव और राज्य को भी गौरवान्वित कर रही है।