बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। नालंदा जिले में बेंच-डेस्क की खरीद में बड़े पैमाने पर हुए कमीशन और भ्रष्टाचार के खेल का पर्दाफाश हुआ है। इस मामले में जिला शिक्षा पदाधिकारी (DEO) राज कुमार और तत्कालीन जिला कार्यक्रम पदाधिकारी (DPO) कविता कुमारी पर प्रपत्र-क गठित किया गया है। यह कार्रवाई तब हुई जब अस्थावां के विधायक डॉ. जितेन्द्र कुमार ने इस घोटाले को विधानसभा में उठाया और जांच की मांग की।
मामले की जांच के लिए डीडीसी की अध्यक्षता में गठित जिला निगरानी समिति ने तत्कालीन डीपीओ स्थापना सुजीत कुमार राउत को दोषी पाया। इसके आधार पर जिला अधिकारी (DM) ने शिक्षा विभाग के निदेशक (प्रशासन) को प्रपत्र-क के तहत कार्रवाई करने की सिफारिश की है। इस घोटाले का मुख्य आरोप है कि स्कूलों में बेंच-डेस्क की आपूर्ति के लिए 35 प्रतिशत कमीशन की मांग की गई थी।
इस मामले में विधायक डॉ. जितेन्द्र कुमार ने विधानसभा में तारांकित प्रश्न के माध्यम से शिक्षा मंत्री से पूछा कि निगरानी समिति की अनुशंसा के बावजूद दोषियों पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई। इस पर शिक्षा मंत्री ने बताया कि डीएम के निर्देशानुसार डीईओ से स्पष्टीकरण मांगा गया था। जिसके बाद प्रपत्र-क की कार्रवाई के तहत डीईओ राज कुमार और तत्कालीन डीपीओ कविता कुमारी पर सख्त कार्रवाई की सिफारिश की गई।
आरोप है कि बेंच-डेस्क की आपूर्ति के बिना ही कुछ एजेंसियों को भुगतान किया गया और बिना कमीशन के किसी भी कंपनी को वर्क ऑर्डर नहीं दिया गया। अररिया की एक एजेंसी द्वारा आपूर्ति की गई बेंच-डेस्क के एवज में 63 लाख रुपए से अधिक का भुगतान किया गया था। जबकि 18 लाख से अधिक की राशि का भुगतान रोक दिया गया। इस घोटाले में कुल 3 करोड़ से अधिक की राशि के घोटाले की बात सामने आई है।
कई विद्यालयों के प्रधानाध्यापकों ने डीईओ से शिकायत की थी कि वेंडरों द्वारा बिना आपूर्ति किए ही बिल पर जबरदस्ती हस्ताक्षर कराए जा रहे थे। इसके बावजूद डीईओ ने कोई कार्रवाई नहीं की। अस्थावां और राजगीर प्रखंड में कुल 1637 बेंच-डेस्क की आपूर्ति की गई थी। लेकिन कई स्थानों पर बिना आपूर्ति के ही भुगतान कर दिया गया। मध्य विद्यालय देकपुरा रहुई में 117 बेंच-डेस्क के सेट की बिना आपूर्ति के ही 5 लाख 83 हजार से अधिक का भुगतान कर दिया गया।
अब डीईओ और डीपीओ पर दोष सिद्ध होने के बाद मामले में आगे की कार्रवाई शुरू हो चुकी है। जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग द्वारा इस घोटाले की और भी विस्तृत जांच की जा रही है। ताकि अन्य दोषियों को भी कटघरे में खड़ा किया जा सके। क्योंकि यह मामला बिहार के शिक्षा तंत्र में फैले भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही का एक ज्वलंत उदाहरण बन चुका है। जिससे शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
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